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श्रमण, जुलाई-सितम्बर, १९९१ ककुदाचार्यसन्तानीय आचार्यों की तालिका में उल्लिखित कक्कसूरि [वि० सं०. १३७८-१४१२ प्रतिमालेख] और उनके गुरु सिद्धसुरि [वि० सं० १३४६-१३७३ प्रतिमालेख को नाभिनन्दनजिनोद्धारप्रबन्ध के कर्ता कक्कसूरि और उनके गुरु सिद्धसूरि से समसामयिकता के आधार पर अभिन्न मान सकते हैं। इसी प्रकार वि० सं० १३५२ में प्रतिलिपि कृत उत्तराध्ययनसूत्र की सुखबोधावृत्ति में उल्लिखित सिद्धसूरि भी उपरोक्त सिद्धसूरि से अभिन्न प्रतीत होते हैं। इसी प्रकार ककुदाचार्य सतानीय देवगुप्तसूरि [वि० सं० १३१४-१३२३ प्रतिमालेख] तथा उपकेशगच्छप्रबन्ध और नाभिनन्दनजिनोद्धारप्रबन्ध के रचनाकार कक्कसूरि के प्रगुरु और सिद्धसूरि के गुरु देवगुप्तसूरि को एक ही आचार्य माना जा सकता है । __ उपकेशगच्छीय मतिशेखर द्वारा रचित धन्नारास [रचनाकाल वि० सं० १५१४/ई० सन् १४५८] और वाचकविनयसमुद्र द्वारा रचित आरामशोभाचौपाई [वि० सं० १५८३/ई० सन् १५२७] की प्रशस्तियों में रचनाकार द्वारा जो गुरु-परम्परा दी गई है उसकी संगति भी ककुदाचार्यसन्तानीय गुरु-परम्परा से पूर्णतया बैठ जाती है। इनका विवरण इस प्रकार है
। धन्नारास -मरु-गुर्जर भाषा में रचित यह रचना उपकेशगच्छीय मुनि शीलसुन्दर के शिष्य मतिशेखर की अनुपम कृति है। इसकी प्रशस्ति' में रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा और रचनाकाल का उल्लेख किया है. जो इस प्रकार है
रत्नप्रभसूरि
यक्षदेवसूरि १. श्री उवओसगछ सिणगारो पहिलो रयणप्पह गणधारो,
गुणि गोयम अवतारो, जक्खदेवसूरीय प्रसिद्धो तास पाटि जिणि जगि जस लीधो,
संयमसिरि उरिहारो।।२६।। अनुक्रमि देवगुप्तसूरीस, सिद्धसूरि नामि तस सीस
मुणिजण सेवीय पाय
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