________________
श्रमण, अप्रैल-जून, १९९१
९६ नहीं पहुंची थी तथा वह भाग जंगली एवं कृषि-विहीन क्षेत्र था। इस क्षेत्र में विधिवत् मार्ग निर्माण का श्रेय विदेह माधव को ही है जिन्होंने सदानीरा के उस पार विदेह राज्य की स्थापना की थी।
रामायण काल में भी इस क्षेत्र की तथा यहाँ से होकर जाने वाले राजमार्ग की महत्ता रही है। राजा दशरथ के समय यह क्षेत्र कौशल राज्य के अन्तर्गत आता था। सदानीरा (गण्डक) कौशल राज्य की सीमा बनाती थी, अयोध्या, जनकपुर का मार्ग इस क्षेत्र से ही होकर जाया करता था। श्रुति, स्मृति किंवदन्ती के आधार पर प्रचलित है कि राजकुमार रामचन्द्र जी तथा अन्य राजकुमारों की बारात लेकर महाराज दशरथ जब जनकपुर से अयोध्या वापस जा रहे थे तो उन्होंने यहीं पर पड़ाव डाला था, बाँसी नदी का रामघाट इसका प्रतीक है। इसी उपलक्ष्य में प्रतिवर्ष कात्तिक पूर्णिमा को इस नदी के तट पर मेला लगता है। वाल्मीकि रामायण से भी अयोध्या और जनकपुर के बीच के मार्ग का वर्णन प्राप्त होता है। महर्षि वाल्मीकि का आश्रम बिहार के उत्तरी-पूर्वी छोर से लगा हुआ है तथा नेपाल में त्रिवेणी के संगम तट पर स्थित है। यह स्वीकार किया जा सकता है कि निर्वासिता सीता लक्ष्मण के साथ इसी मार्ग से होकर वाल्मीकि आश्रम गयी थीं। वाल्मीकि रामायण से ज्ञात होता है कि लक्ष्मण के पुत्र चन्द्रकेतु मल्लवंश के जनक रहे हैं। शरीर से हृष्ट-पुष्ट एवं मल्ल युद्ध में प्रवीण होने के कारण इन्हें मल्ल सम्बोधित किया जाता था। चन्द्रकांता नगरी बसाकर उन्हें इस क्षेत्र का राज्य सौंपा गया था।
महाभारत काल में इस क्षेत्र का महत्वपूर्ण स्थान था, जो प्रमुख राजमार्ग के अन्तर्गत आता था । महाभारत में मुख्य मल्ल एवं दक्षिणी मल्ल का स्पष्ट उल्लेख प्राप्त होता है। इस महाकाव्य में गण्डक तथा सदानीरा का उल्लेख बार-बार आता है। महाभारत से ज्ञात होता है कि श्रीकृष्ण जरासंध वध के निमित्त भीम और अर्जुन को तपस्वियों के वेष में सामान्य राजमार्ग, जिसके अन्तर्गत साकेत, वाराणसी, पाटलिपुत्र इत्यादि नगर आते थे, को छोड़कर हिमालय की तराई के मार्ग से होकर जनकपुर गये, वहीं कुछ समय विश्राम कर राजगृह गए थे। इसी क्रम में उन्होंने सरयू, राप्ती, सदानीरा गंडकी इत्यादि नदियों को पार किया था। भीम के दिग्विजय तथा कर्ण के नेपाल
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org