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________________ आगमों में वर्णित जातिगत समता कुलों में भिक्षाटन करता हुआ। यहाँ उच्च, नीच, मध्यम कुल का जाति-वंश परक या रंग-प्रान्त-राष्ट्रादिपरक अर्थ न करके जैनाचार्यों ने सम्पन्नता-असम्पन्नता परक अर्थ ही किया है। अगर उच्च-नीच या किसी प्रकार का भेद-भाव, आहार ग्रहण करने के विषय में करना होता तो शास्त्रकार मूलपाठ में नापित, बढ़ई, तन्तुवाय आदि के घरों से आहार लेने का विधान न करते । भिक्षा के लिए निषिद्ध कुलों का स्पष्ट विभाजन परवर्ती ग्रन्थों में ही उपलब्ध होता है । निशीथचणि' में इन कुलों का विभाजन निम्नवत् है भिक्षा के लिए निषिद्ध कुल लौकिक लोकोत्तर वसति से असम्बद्ध इत्वरिक [जो काल विशेष के । लिए भिक्षा हेतु निषिद्ध माने जाते हैं जैसे परिवार में प्रसव या मृत्यु आदि होने । (अर्थात् गृह के क्रम के आधार पर) का परिवार) पर) यावत्कथिक [जो जीवन पर्यन्त के लिए निषिद्ध माने जाते हैं] कर्म जुंगित शिल्प जुंगित जाति जुंगित जुंगित अथवा जुगुप्सित का अर्थ घृणित होता है, घृणा उन घरों में होती है, जहाँ खुलेआम मांस-मछली आदि पकाये जाते हों, मांस के टुकड़े, हड्डियाँ, चमड़ा आदि पड़ा हो, पशुओं या मछलियों आदि का वध किया जाता हो, जिनके बर्तन, घर, आँगन, कपड़े, शरीर आदि अस्वच्छ हों, ऐसे घर, चाहे वे क्षत्रियों के ही क्यों न हों उन्हें जुगुप्सित और घृणित होने के कारण साधुओं के लिए त्याज्य समझना चाहिए १. निशीथचूर्णि, ४, पृ० २७९-८० २. आचारांगसूत्र द्वितीय श्रुतस्कन्ध, विवेचन पृ० २४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525006
Book TitleSramana 1991 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1991
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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