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________________ ऋग्वेद में अहिंसा के सन्दर्भ अर्थात् - जो मनुष्य समस्त लोक के राजा, इन अश्विनीकुमारों की समय के अनुसार परिचर्या करते हैं, उनको मित्र और वरुण जानते हैं । ऐसे वे सेवक महाबली राक्षसों के ऊपर घातक अस्त्र फेंकते हैं क्योंकि ये राक्षस मनुष्यों के सम्बन्ध में द्रोह पैदा करने वाली वाणी का प्रयोग करते हैं । ५१ इसी प्रकार दशम् मण्डल के निम्न मन्त्र में वाचिक हिंसा का सुन्दर एवं स्पष्ट वर्णन किया है " यदग्ने अद्य मिथुना शपातो यद्वाचस्तृष्टं जनयन्त रेभाः । मन्योर्मनसः ः शरव्या जायते या तथा विध्य हृदये यातुधानान् ॥ "" अर्थात् -- आज जब स्त्री-पुरुष झगड़ा कर रहे हैं, स्तोता परस्पर कटुवचन का प्रयोग कर रहे हैं, ऐसी स्थिति में क्रोध उत्पन्न होने पर तुम्हारे मन के पास से जो बाण उत्पन्न होता है, उससे राक्षसों को मार । इस मन्त्र से यह भाव व्यक्त होता है कि अभद्र वाणी का प्रयोग देवता को प्रिय नहीं । यहाँ पर ऋषि का मन्तव्य है कि स्त्री, पुरुषों के कलह करने एवं कटुभाषण करने पर देवता की जो शक्ति क्रोधस्वरूप उन स्त्री पुरुषों पर व्यय हो रही है वह राक्षसों पर व्यय हो । अतः परस्पर कलह एवं अपभाषण न करें । प्रकारान्तर से यहाँ दुष्ट, निन्दायुक्त भाषण का निषेध किया है । ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के निम्न मन्त्र में दृष्टान्त के द्वारा वाचिक अहिंसा के स्वरूप को और अधिक स्पष्ट किया है " मा वो धनन्तं मा शपन्तं प्रति वोचे देवयन्तम् । सुम्नैरिद्व आ विवासे ।"२ "चतुरश्चिद्दद्दमानाद्विभीयादा निधातोः । यहाँ पर भाव यह है जैसे कोई चतुर पुरुष जुआ खेलते हुए, पासा किसके पास जाएगा, यह सोचकर डरता है वैसे ही मैं दुष्ट भाषण से डरता हूँ, तथा देवों की कामना करता हुआ मुझ यजमान १. ऋग्वेद – १०।८७।१३ २. ऋग्वेद – ११४१८ ३. ऋग्वेद – १।४१।९ न दुरुक्ताय स्पृह्येत्” । ' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525006
Book TitleSramana 1991 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1991
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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