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________________ श्रमण, अप्रैल-जून, १९९१ १४ अकार का एकार सम्बन्धी परिवर्तन समझाते हुए प्राकृत प्रकाश में सूत्र है-'ए शय्यादिषु I.5' । इस सूत्र की वृत्ति में जितने शब्द दिये गये हैं वे सभी शब्द आ० हेमचन्द्र ने सूत्र नं० I.57 और 58 में दिये हैं, परन्तु सूत्र नं० 58 में इनमें से उन शब्दों का समावेश है जिनमें वैकल्पिक परिवर्तन होना है। इतना ही नहीं कि सत्र नं0 58 में आश्चर्य के लिए वररुचि की तरह मात्र अच्छोर शब्द का ही उदाहरण दिया हो परन्तु उसके साथ अनेक अन्य प्रयोग (अच्छरिअ, अच्छअर, अच्छरिज्जं और अच्छरीअं) भी दिये हैं जो हेमचन्द्र के व्याकरण की विपुलता, विशालता और उनका सूक्ष्म अवलोकन का दर्शन कराते हैं। इसके अलावा सूत्र नं 57 में कन्दुक =गेन्दुअ और अत्र= एत्थ को और जोड़ा गया है। सूत्र नं 59 और 64 इसी प्रकार के परिवर्तन के सम्बन्ध में दिये गये हैं जिन्हें हम परिवर्तन के रूप में ले सकते हैं। उदाहरण है ब्रह्मचर्य =बम्हचेर और अन्तः= अन्ते (अन्तःपुर = अन्तेउर)। यहाँ पर भी स्पष्ट कहा गया है कि 'क्वचित् न भवति' और उदाहरण दिये गये हैं--अन्तग्गयं और अन्तोवीसम्भ-- निवेसिआणं । इस तरह हेमचन्द्र का कितना सूक्ष्म और विशाल अवलोकन रहा है यही साबित होता है। अनेक सूत्रों की वृत्ति में आर्ष यानि अर्धमागधी की जो विशेषताएँ बतलायी हैं वह तो एक विशिष्ट मुद्दा है ही, जैसे यहाँ पर सूत्र नं 57 की वृत्ति में कहा गया है 'आर्षे परेकम्म' । प्राकृत-प्रकाश में दिये गये शब्दों के सिवाय हेमचंद्र ने जो अधिक शब्द विकल्प से दिये गये हैं वे जैनेतर साहित्य में भी मिलते हैं--अच्छरिअ (गौडवहो), इसी शब्द को बाद में प्राकृत-प्रकाश में शौरसेनी भाषा में (XII-30) दिया गया है। ___ वररुचि के प्रा० प्र० में I. 2 सूत्र के अनुसार होने वाले वैकल्पिक प्रयोगों का निषेध करते हुए सूत्र नं I. 3 की वृत्ति में (वेति निवृत्तम्) पक्व के लिए पिक्क और अङ्गार के लिए इंगाल यानि अ का इ में नियमित परिवर्तन बताया है जो उचित प्रतीत नहीं होता। हेमचंद्र के अनुसार (8.1.47) विकल्प से पक्क और अंगाल भी होता है। उनका सूत्र है-- 'पक्वाङ्गार ललाटे वा' अर्थात् इन शब्दों में अ का इ विकल्प से होता है। महाराष्ट्री प्राकृत में ही ऐसे उदाहरण मिलते हैं--पक्कगाह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525006
Book TitleSramana 1991 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1991
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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