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________________ प्राकृत व्याकरण : वररुचि बनाम हेमचन्द्र अन्धानुकरण या विशिष्ट प्रदान ___ --के० आर० चन्द्र वररुचि प्राकृत भाषा के आदि व्याकरणकार माने जाते हैं क्योंकि प्राकृत का अन्य कोई व्याकरण अभी तक मिला ही नहीं है। उनके पश्चात् चण्ड का क्रम आता है तत्पश्चात् आ० हेमचन्द्र का। इन दोनों पूर्ववर्ती व्याकरणकारों से हेमचन्द्र का प्राकृत व्याकरण बहुत विशाल है और उसमें सामान्य प्राकृत यानि महाराष्ट्री प्राकृत के अलावा अन्य प्राकृत भाषाओं का व्याकरण भी है। वररुचि के प्राकृतप्रकाश में सामान्य प्राकृत के नौ परिच्छेद हैं और पैशाची, मागधी तथा शौरसेनी के तीन परिच्छेद प्रक्षिप्त माने गये हैं। आ० हेमचन्द्र के व्याकरण में चूलिका पैशाची का भी समावेश है और वृत्ति में अर्धमागधी के लक्षण भी दिये गये हैं। अपभ्रंश भाषा के विषय में उनका जो प्रदान है वह तो अद्वितीय है ही। ___ इस निबंध में सभी प्राकृत भाषाओं की चर्चा न करके मात्र महाराष्ट्री प्राकृत अर्थात् सामान्य प्राकृत की ही मुख्यतः चर्चा की जा रही है । वररुचि और हेमचन्द्र के व्याकरणग्रन्थों के अध्ययन से स्पष्ट है कि हेमचन्द्र ने अपने पूर्ववर्ती से बहुत कुछ लिया है और बहुत कुछ नया भी दिया है। हेमचन्द्र ने अपने व्याकरण में किसी भी पूर्ववर्ती व्याकरण-कार के नाम का कोई उल्लेख नहीं किया है परन्तु कई स्थलों पर कश्चित् केचित् अन्ये इत्यादि का उल्लेख करके परोक्ष रूप में उनका स्मरण अवश्य किया है। ___कोई भी शास्त्रकार अपने पूर्ववर्ती शास्त्रकारों की रचनाओं का उपयोग करके आगे बढ़ता है, उसी प्रकार आ० हेमचन्द्र ने भी वररुचि से बहुत कुछ लिया है परन्तु साथ ही साथ उनकी टीका किये बिना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525006
Book TitleSramana 1991 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1991
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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