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________________ ( ९१ ) दासवृत्ति से मुक्ति प्रदान कर देते थे । ऐसी स्थिति में दास-दासियों का मधुर वचनों से तथा विपुल पुष्पों, गंधों, मालाओं और आभूषणों से सत्कार-सम्मान करके उनकी इस तरह की आजीविका-व्यवस्था कर दी जाती थी जो उनके पुत्र-पौत्रादि तक चलती रहे । दासों को मुक्त करते समय उनका मस्तकधोत (मस्तक धोना) करना दासता से मुक्ति का प्राथमिक एवं महत्त्वपूर्ण लक्षण माना जाता था। इसके अतिरिक्त वह व्यक्ति जो दुभिक्ष अथवा अन्य अवसर पर महाजनों से ऋण लेता था तथा समय पर ऋण न देने पर दासत्व स्वीकार करता था । ऐसी स्थिति में उस ऋणी व्यक्ति द्वारा साहूकार का कर्ज चुकता कर देने पर दासपन से मुक्ति सम्भव थी। सामान्यतया दासों को जीवनपर्यन्त स्वतन्त्र होने का अधिकार एवं अवसर बहुत कम था। सामान्यतः दासपति अपने यहाँ नियुक्त दासों का पालन-पोषण पारिवारिक सदस्य की तरह करते थे। -शोध सहायक पा० वि० शोध संस्थान १. ज्ञाताधर्मकथा सूत्र १।१८९ २. व्यवहारभाष्य ४।२, २०६-७ ३. देखिए, जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृ० १५८-५९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525004
Book TitleSramana 1990 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1990
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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