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________________ ( ८२ ) दोनों में अन्तर१.-जैन दर्शन में तीर्थंकरों को ईश्वर रूप में स्वीकार किया गया है । ईश्वर पहले मनुष्यों की तरह बद्ध है और मुक्त होकर ईश्वरत्व प्राप्त कर लेता है । योग दर्शन में ईश्वर को नित्यमुक्त कहा गया है। वह कभी बंधन में पड़ा ही नहीं जिससे मुक्ति का प्रश्न उठे। २-जैनियों के अनुसार पूर्णता की प्राप्ति कैवल्यावस्था में होती है जबकि योग के अनुसार ईश्वर नित्यपूर्ण है, वह नित्य शुद्ध और बुद्ध है। ३—स्रष्टा और पालनकर्ता के रूप में ईश्वर की सत्ता का खण्डन जैन धर्म करता है। उसके अस्तित्व के लिए दिए गए परम्परागत तर्कों का भी खण्डन वहाँ मिलता है। दूसरी तरफ योग दर्शन में हम देखते हैं कि ईश्वर के अस्तित्व को सिद्ध करने के लिए प्रमाण दिये गये हैं। इन प्रमाणों के आधार पर ईश्वर की सिद्धि होती है। -जैन धर्म में ईश्वर कृपा के लिए कोई स्थान नहीं है। मनुष्य साधना द्वारा अपने प्रयत्न से ही परमात्म तत्त्व की प्राप्ति करता है, ईश्वर कृपा से नहीं। योगदर्शन में समाधिलाभ को ही परमात्मलाभ तथा समाधिफल को कैवल्य प्राप्ति माना गया है । परन्तु साथ ही साथ यह भी बतलाया गया है कि ईश्वर के अनुग्रह (कृपा) से ही शीघ्र समाधिलाभ हो सकता है तथा ईश्वर की अनुकम्पा से ही कैवल्य की प्राप्ति संभव है। ५-जैन दर्शन नास्तिक होने के कारण वेद को प्रमाण नहीं मानता और न तदनुरूप ईश्वर विचार की व्याख्या करता है, जबकि योगदर्शन आस्तिक दर्शनों की कोटि में आता है और वेद को प्रमाण मानकर ईश्वर की अवधारणा की व्याख्या करता है। यह वेदों के आधार पर ही ईश्वर के अस्तित्व को सिद्ध करता है। उपयुक्त विवरण से यह निष्कर्ष निकलता है कि जैन एवं योग दर्शन में वर्णित ईश्वर विचार तत्संबंधित दार्शनिक मान्यताओं से प्रभावित है। वैसे दोनों ही इस बात से सहमत हैं कि ईश्वर जगत् का स्रष्टा और पालनकर्ता नहीं है जैसा कि ईश्वरवादी विचारधारा में स्वीकार किया गया है। जैन दर्शन द्रव्यों से जगत् की सृष्टि मानता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525004
Book TitleSramana 1990 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1990
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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