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________________ ( ७४ ) योग दर्शन में भी ईश्वर सम्बन्धी अवधारणा को एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है । योग सांख्य का व्यावहारिक पक्ष है और सांख्य योग का सैद्धान्तिक पक्ष । योग सांख्य द्वारा प्रतिपादित तत्त्व-मीमांसा, ज्ञानमीमांसा आदि को मानकर चलता है। गीता में इन दोनों को एक ही माना गया है । एक ही मत के सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक पक्ष होने के कारण दोनों एक ही हैं। योग ईश्वर में विश्वास करता है इसीलिए इसे सेश्वर सांख्य भी कहा गया है ।२ सनातन सांख्य निरीश्वरवादी है। योगदर्शन के प्रणेता महर्षि पतंजलि की दृष्टि में ईश्वर का उतना सैद्धान्तिक मूल्य नहीं है जितना व्यावहारिक । जगत् से संबंधित समस्याओं के निराकरण हेतु वे ईश्वर की आवश्यकता महसूस नहीं करते क्योंकि जगत् विकास का परिणाम है।३ अव्यक्त प्रकृति समस्त कार्यों का कारण है। पतंजलि का कहना है कि ईश्वर प्रणिधान भी समाधि का एक साधन है जिसके द्वारा मुक्ति मिल सकती है। इसकी उपयोगिता चित्त की एकाग्रता में है और ध्यान के साधनों में एक यह भी है। अष्टांग योग का दूसरा अंग नियम या सदाचार का पालन है। इसके निम्नलिखित अंग हैं- (अ) शौच, (आ) संतोष, (इ) तप, (ई) स्वाध्याय, (उ) ईश्वर प्रणिधान ।५ ईश्वर प्रणिधान से तात्पर्य ईश्वर का ध्यान एवं उन पर अपने को छोड़ देना है। ___ कालान्तर में (बाद के) योग दार्शनिकों ने सैद्धान्तिक रूप से ईश्वर के स्वरूप की विवेचना की और ईश्वर के अस्तित्व के लिए प्रमाण भी दिया। इस तरह योग दर्शन के ग्रंथों में ईश्वर संबंधी विचार भी मिलते हैं। १. ए क्रिटिकल सर्वे ऑफ इण्डियन फिलासफी-चन्द्रधर शर्मा, मोतीलाल __ बनारसी दास १९७६, पृ० १६९ २. वही ३. भारतीय दर्शन-दत्ता और चटर्जी पृ० १९५-१९६ ४. द्रष्टव्य योग सूत्र और भाष्य २।२६-५५ तथा ३।१-४ ५. शौचसंतोष तप : स्वाध्यायेश्वर प्रणिधानानि नियमाः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525004
Book TitleSramana 1990 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1990
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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