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________________ ( ६ ) , विचलित करने वाली, धर्मयाग में बाधा रूप, मोक्षपथ साधकों की शत्रु, ब्रह्मचर्यादि आचार मार्ग का अनुसरण करने वालों के लिए दूषण रूप, कामी की वाटिका, मोक्षपथ की अगंला, दरिद्रता का घर, विषधर सर्प की भांति कुपित होने वाली, मदमत्त हाथी की भांति कामविह्वला, व्याघ्री की भाँति दुष्ट हृदय वाली, ढंके हुए कूप की भांति अप्रकाशित हृदय वाली, मायावी की भाँति मधुर वचन बोलकर स्वपाश में आबद्ध करने वली, आचार्य की वाणी के समान अनेक पुरुषों द्वारा एक साथ ग्राह्य, शुष्क कण्डे की अग्नि की भाँति पुरुषों के अन्तःकरण में ज्वाला प्रज्वलित करने वाली विषम पर्वतमार्ग की भांति असमतल अन्तःकरण वाली, अन्तदूषित घाव की भांति दुर्गन्धित हृदय वाली, कृष्ण सर्प की तरह अविश्वसनीय, संहार (भैरव) के समान मायावी, सन्ध्या की लालिमा की भाँति क्षणिक प्रेम वाली, समुद्र की लहरों की भाँति चंचल स्वभाव वाली, मछलियों की भांति दुष्परिवर्तनीय स्वभाव वाली, बन्दरों के समान चपल स्वभाव वाली, मृत्यु की भाँति निर्विरोष, काल के समान दयाहीन, वरुण के समान पाशयुक्त अर्थात् पुरुषों को कामपाश में बाँधने वाली, जल के समान अधोगामिनी, कृपण के समान रिक्त हस्त वाली, नरक के समान दारुणत्रासदायका गर्दभ के सदृश दुष्टाचार वाली, कुलक्षणयुक्त घोड़े के समान लज्जारहित व्यवहार वाली, बाल स्वभाव के समान चंचल अनुराग वाली, अन्धकारवत् दुष्प्रविश्य, विष बेल की भाँति संसर्ग वर्जित, भयंकर मकर आदि से युक्त वापी के समान दुष्प्रवेश्य, साधुजनों की प्रशंसा के अयोग्य, विष-वृक्ष के फल की तरह प्रारम्भ में मधुर किन्तु दारुण अन्त वाली, खाली मुट्ठी से जिस प्रकार बालकों को लुभाया जाता है उसी प्रकार पुरुषों को लुभाने वाली, जिस प्रकार एक पक्षी के द्वारा मांस खण्ड ग्रहण करने पर अन्य पक्षी उसे विविध कष्ट देते हैं उसी प्रकार दारुण कष्ट स्त्री को ग्रहण करने पर पुरुषों को होते हैं, प्रदीप्त तृणराशि की भाँति ज्वलन स्वभाव को न छोड़ने वाली, घोर पाप के समान दुलंघ्य, कूट कार्षापण की भाँति अकालचारिणी, तीव्र क्रोध की भाँति दुर्रक्ष्य, दारुण दुखदायिका, घृणा की पात्र, दुष्टोपचारा, चपला, अविश्वसनीया, एक पुरुष से बंधकर न रहने वाली, यौवनावस्था में कष्ट से रक्षणीय, बाल्यावस्था में दुःख से पाल्य, उद्वेगशीला, कर्कशा, दारुण वैर का कारण, रूप स्वभाव गर्विता, भुजंग के समान कुटिल गति वाली, दुष्ट घोड़े के पदचिह्न से युक्त महाजंगल की भाँति दुर्गम्य, कुल, स्वजन और मित्रों से विग्रह कराने वालो, परदोष प्रकाशिका, कृतघ्ना, वीर्यनाशिका, शुकरवत् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ,
SR No.525004
Book TitleSramana 1990 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1990
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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