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________________ ( ६४ ) चार बताते हैं, जो निम्न हैं (१) बन्ध अर्थात् रस्सी आदि से पशुओं तथा मनुष्यों को बाँधना (२) वध अर्थात् मारना-ताड़ना (३) विच्छेद अर्थात् शरीर का छेदन करना ( ४ ) अति-आरोपण अर्थात् आवश्यकता से अधिक बोझ लादना (५) भक्तफानव्युच्छेद अर्थात् भोजन-पान का निरोध करना। __ आचार्य हरिभद्र का श्रावकों को यह उपदेश है कि वे इन अतिचारों से यथासम्भव बचने का प्रयास करें। आधुनिक काल में भी इन अतिचारों से आसानीपूर्वक बचा जा सकता है। हमें बिना प्रयोजन के पशुओं आदि को नहीं बाँधना चाहिए तथा यदि. बाँधना आवश्यक हो तो ऐसा बाँधना चाहिए जिससे वे आकस्मिक विपत्ति में सरलतापूर्वक छुड़ाकर अपने प्राणों की रक्षा कर सकें। इसी प्रकार शरीर का छेदन अथवा मारना-ताड़ना भी प्रयोजनवश होना चाहिए, निर्दयतापूर्वक नहीं। इसीप्रकार हम दासों या पशुओं पर आवश्यकता से अधिक बोझ न लादकर अतिचार से बच सकते हैं। जहाँ तक भोजन-पान के निरोध का प्रश्न है, वह भी शिक्षाप्रद होना चाहिए। उनके भोजन-पान का निरोध कुछ ही समय के लिए करना चाहिए ताकि उन्हें व्याकुलता का अनुभव न हो। अन्त में आचार्य हरिभद्र अहिंसाणुव्रत की रक्षा के लिए श्रावक को शुद्ध जल पीने एवं जीव-जन्तुओं से रहित विशुद्ध लकड़ी एवं खाद्य पदार्थ के उपयोग की सलाह देते हैं । शुद्ध जल पीने एवं जीव-जन्तुओं से रहित खाद्य पदार्थ के उपभोग की सलाह आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टि से सर्वथा समर्थित है। शुद्ध जल या तो साफ कपड़े से छानकर अथवा उबालकर प्राप्त किया जा सकता है। दोनों दृष्टियों से यह स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। जीव-जन्तु रहित लकड़ी के उपयोग की सलाह मुख्यतः अहिंसा को १ श्रावक प्रज्ञप्ति, गाथा सं० २५८ २. "परिसुद्धजलग्गहणं दारूय-धन्नाइयाण तह चेव गहियाण वि परिभोगो विहीइ तसरक्खणट्ठाए।" -वही, २५९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525004
Book TitleSramana 1990 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1990
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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