SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आदि से युक्त शारीरिक संरचना स्त्रीलिंग है, यही द्रव्य-स्त्री है, जबकि पुरुष के साथ सहवास की कामना को अर्थात् स्त्रीयोचित् काम-वासना को वेद कहा गया है । वही वासना की वृत्ति भाव-स्त्री है।' जैन आगमिक व्याख्या साहित्य में स्त्री की काम-वासना के स्वरूप को चित्रित करते हए उसे उपलअग्निवत् बताया गया है । जिस प्रकार उपल-अग्नि के प्रज्वलित होने में समय लगता है किन्तु प्रज्वलित होने पर चालना करने पर बढ़ती जाती है, अधिक काल तक स्थायी रहती है उसी प्रकार स्त्री की कामवासना जागृत होने में समय लगता है, किन्तु जागृत होने पर चालना करने से बढ़ाती जाती है और अधिक स्थायी होती है। जैनाचार्यों का यह कथन एक मनोवैज्ञानिक सत्य लिए हुए है । यद्यपि लिंग और वेद अर्थात् शारीरिक संरचना और तत्सम्बन्धी कामवासना सहगामी माने गये हैं, फिर भी सामान्यतया जहाँ लिंग शरीर पर्यन्त रहता है, वहाँ वेद ( कामवासना ) आध्यात्मिक विकास की एक विशेष अवस्था में समाप्त हो जाता है। जैन कर्मसिद्धान्त में लिंग का कारण नामकर्म (शारीरिक संरचना के कारक तत्व ) और वेद का कारण मोहनीयकम ( मनोवृत्तियाँ ) माना गया है। इस प्रकार लिंग, शारीरिक संरचना का और वेद मनोवैज्ञानिक स्वभाव और वासना का सूचक है तथा शारीरिक परिवर्तन से लिंग में और मनोभावों के परिवर्तन से वेद में परिवर्तन सम्भव है। निशीथचूणि ( गाथा ३५९ ) के अनुसार लिंग परिवर्तन से वेद ( वासना ) में भी परिवर्तन हो जाता है इस सम्बन्ध में सम्पूर्ण कथा द्रष्टव्य है। जिसमें शारीरिक संरचना और स्वभाव की दृष्टि से स्त्रोत्व हो, उसे ही स्त्री कहा जाता है । सूत्रकृतांग नियुक्ति में स्त्रीत्व के नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, प्रजनन, कर्म, भोग, गुण और भाव ये दस १. अभिधान राजेन्द्र, भाग २, पृ० ६२३ २. यद्वशात् स्त्रियाः पुरुषं प्रत्यभिलाषो भवति, यथा पित्तवणान् मधुर द्रव्यं प्रति स फुफुमादाहसमः, यथा यथा चाल्यते तथा तथा ज्वलति बृहति च । एवम् बलाऽपि यथा यथा संपृश्यते पुरुषण तथा तथा अस्या अधिकतरोऽभिलाषो जायते, भुज्यमानायां तु छन्नकरीषदाहतुल्योऽभिलाषोः, मन्द इत्यर्थः इति स्त्रीवेदोदयः।--वही, भाग ६, पृष्ठ १४३० ३. संमत्तंतिमसंधयण तियगच्छेओ बि सत्तरि असुव्वे । हासाइछक्कअंतो छसट्ठि अनियट्टिवेयतिगं ।। ४. देखे-कर्मप्रकृतियों का विवरण ।-कर्मग्रन्थ, भाग २, गाथा १८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525004
Book TitleSramana 1990 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1990
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy