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________________ जैन धर्म में नारी की भूमिका भारतीय सांस्कृतिक परम्पराओं में श्रमण परम्परा विवेक प्रधान एवं क्रान्तिधर्मी रही है। उसने सदैव ही विषमतावादो और वर्गवादी अवधारणाओं के स्थान पर ममतावादी जीवन मूल्यों को स्थापित करने का प्रयास किया। जैन धर्म भी श्रमण परम्परा का ही एक अंग है अतः उसमें भी नर एवं नारी की समता पर बल दिया गया और स्त्री के दासी या भोग्या स्वरूप को नकार कर उसे पुरुष के समकक्ष ही माना गया है। फिर भी यह सत्य है कि जैन धर्म और संस्कृति का विकास भी भारतीय संस्कृति के पुरुष प्रधान परिवेश में ही हुआ है, फलतः क्रान्तिधर्मी होते हुए भी वह अपनी सहगामी ब्राह्मण परम्परा के व्यापक प्रभाव से अप्रभावित नहीं रह सको और उसमें भी विभिन्न कालों में नारी को स्थिति में परिवर्तन होते रहे। यहाँ हम आगमों और आगमिक व्याख्या साहित्य के आधार पर जैनाचार्यों की दृष्टि में नारी की क्या स्थिति रही है इसका मूल्यांकन करेंगे, किन्तु इसके पूर्व हमें इस साहित्य में उपलब्ध सन्दर्भो का प्रकृति को समझ लेना आवश्यक है। जैन आगम साहित्य एक काल की रचना नहीं है। वह ईसा पूर्व पांचवीं शती से लेकर ईसा की पांचवीं शती तक अर्थात् एक हजार वर्ष की सुदीर्घ कालावधि में निर्मित, परिष्कारित और परिवर्तित होता रहा है अतः उसके समग्र सन्दर्भ एक ही काल के नहीं है । पुनः उनमें भी जो कथा भाग है, वह मूलतः अनुश्रुतिपरक और प्रागैतिहासिक काल से सम्बन्ध रखता है। अतः उनमें अपने काल से भी पूर्व के अनेक तथ्य उपस्थित हैं, जो अनुश्रुति से प्राप्त हुए हैं । उनमें कुछ ऐसे भी तथ्य हैं, जिनकी ऐतिहासिकता विवादास्पद हो सकती है और उन्हें मात्र पौराणिक कहा जा सकता है । जहाँ तक आगमिक व्याख्या साहित्य का सम्बन्ध है, वह मुख्यतः आगम ग्रन्थों पर प्राकृत एवं संस्कृत में लिखो गयी टीकाओं पर आधारित है अतः इसकी कालावधि ईसा की ५वीं शती से बारहवीं शती तक है। उसमें भी अपने युग के सन्दर्भो के साथ आगम युग के सन्दर्भ भी मिल गये हैं । इसके अतिरिक्त इन आगमिक व्याख्याओं में कुछ ऐसे उल्लेख भी मिलते हैं, जिनका मूल स्रोत, न तो आगमों में और न व्याख्याकारों के समकालीन समाज में खोजा जा सकता है, यद्यपि वे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525004
Book TitleSramana 1990 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1990
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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