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________________ ( १०५ ) मूर्ति प्रतिष्ठा १ जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह ' से सूचना प्राप्त होती है कि संवत् -१४१८ में मलधारि राजशेखर ने श्रीमाल में श्रीपार्श्वनाथ की प्रतिमा की प्रतिष्ठा करवायी थी । आचार्य राजशेखर और तुगलक शासक खरतरगच्छ बृहद्गुर्वावलि के अनुसार सन् १३२८ ई० में मुहम्मद तुगलक ( १३२५-१३५१ ई० ) ने राजशेखर के शिक्षा गुरु जिनप्रभसूरि को दिल्ली आमन्त्रित किया था । जिनप्रभ के साथ राजदरबार में उनके शिष्य जिनदेव, राजशेखर आदि भी गये थे । राजशेखर का दीर्घकालीन दिल्ली प्रवास और दिल्ली में ही प्रबन्धकोश की रचना भी यही इंगित करती है कि राजशेखर का तुगलक शासक मुहम्मद तुगलक पर प्रभाव था और सुल्तान के चरित्र में धार्मिक सहिष्णुता के विशिष्ट गुण का समावेश था। एम० ए० इलियट एवं एफ० ई० मेरिल ने भी लिखा है कि जिनप्रभसूरि के साथ तुगलक दरबार में प्रतिष्ठा अर्जित कर लेने से राजशेखर की प्रस्थिति में भी वृद्धि हुई । • ऐसी स्थिति के अनुरूप उन्होंने जो भूमिका निभाई वह जैन इतिहास में सदा स्मरणीय रहेगी । प्रस्थिति जन्म जात भी होती है और अर्जित भी । भूमिका का आशय पदों से जुड़े कर्त्तव्यों और कार्यों से है । ३ शिष्यपरम्परा अकेले मुनिसुधाकलश ' रचयिता ( १३४९ ई० ) का मलधारि राजशेखर के मिलता है । स्पष्ट रूप से सुधाकलश ने माना है । संगीतोपनिषत् सारोद्धार' शिष्य के रूप में उल्लेख राजशेखर को अपना गुरु १. बुद्धिसागर सूरि -- जैनधातु प्रतिमालेखसंग्रह भाग १, अध्यात्म ज्ञान प्रसारक मण्डल, चम्पागली, बम्बई १९३५ Jain Education International २. प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन, पृ० ३५ ३. इलियट, एम० ए० एवं मेरिल, एफ० ई० : सोसल डिसआर्गेनाइजेशन पृ० ९, न्यूयार्क, १९६१ ४. अलंकार महोदधि - प्रस्तावना For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525004
Book TitleSramana 1990 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1990
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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