SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १०३ ) है । बृहद्गच्छीय गुणभद्रसूरि विरचित शान्तिनाथचरित का संशोधन ' इसका प्रमाण है । राजशेखर को पद प्राप्ति राजशेखर को संवत् १३१३ ( ई० सन् १२५६ ) में गच्छवृद्धि की दीक्षा दिये जाने का स्पष्ट उल्लेख है । गच्छवृद्धि की दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात् श्रमण को मुनि कहा जाता है । मुनि के बाद अगले क्रम में श्रमण को गणि पद प्रदान किया जाता है । राजशेखर को गणिपद किस समय प्रदान किया गया यह तो ज्ञात नहीं होता परन्तु यह उल्लेख अवश्य मिलता है कि संवत् १३४१ में ( १२८४ ई० ) जावालिपुर ( वर्तमान जालौर ) के वर्धमान महावीर के मन्दिर में श्री जिन प्रबोधसूरि द्वारा जिनचन्द्रसूरि को आचार्य पद पर स्थापित किया गया और उसी दिन राजशेखर गणि को वाचनाचार्य अर्थात् उपाध्याय पद प्रदान किया गया । इससे स्पष्ट है कि संवत् १३१३ और १३४१ के मध्य किसी समय गणिपद प्राप्त कर चुके थे । खरतरगच्छ बृहद्गुर्वावलि के आधार पर ही डॉ० प्रवेश भारद्वाज ने यह सूचना दी है कि वर्धमानसूरि ने संवत् १३४१ ई० में राजशेखरगणि को वाचनाचार्य पद प्रदान किया जो तथ्यपूर्ण नहीं है । सम्भवतः डा० भारद्वाज ने गुर्वावलि में उल्लिखित - सकललोकचमत्कारिणि श्री वर्धमान स्वामिनो महातीर्थे' अर्थात् 'सम्पूर्ण लोक को चमत्कृत करने वाले वर्धमान अर्थात् महावीर स्वामी के तीर्थ' के उल्लेख को वर्धमानसूरि का उल्लेख समझकर यह भूल की है । १. डॉ० वेलणकर, एच० डी० - जिनरत्नकोश खण्ड १, पृ० ३८०, भण्डारकर ओरियण्टल रिसर्च इस्टीच्यूट, पूना १९४४ २. श्री पूज्याः जावालिपुरे समायाताः । तत्र च सकललोक चमत्कारकारिणी .. श्री जिनप्रबोधसूरिभिः श्रीवर्धमानस्वामिनो महातीर्थे श्री जिनचन्द्रसूरयः सं १३४१ स्वपदे महाविस्तरेण स्थापिताः । तस्मिन्नेव दिने राजशेखरगणेवार्चनाचार्यपदं प्रदत्तम् । खरतरगच्छ बृहद्गुर्वावली, पृ० ५८ । ३. डॉ० भारद्वाज, प्रवेश, प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन, पृ० ३० Jain Education International +1 ... For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525004
Book TitleSramana 1990 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1990
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy