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________________ ( ९८ ) में बताया है। स्थूलभद्र, नवें पट्टपर विराजमान सुस्थितसूरि से पूर्व सातवें पट्टपर विराजमान थे। यदि राजशेखर के इस उल्लेख से यह अभिप्राय निकलता है कि कोटिकगण स्थूलभद्र से निकला तो यह मान्यता खण्डित हो जाती है कि सुस्थितसूरि के निर्वाण के पूर्व श्रमण परम्परा गण आदि में विभक्त नहीं थी। श्री अभयदेवसूरि हर्षपुर के वासी थे अतः उनसे निकला गच्छ हर्षपुरीय नाम से जाना जाने लगा । स्वर्गीय अगरचन्द नाहटा ने हर्षपुर की पहचान राजस्थान के वर्तमान हरसौर, मकराने के निकट स्थित से की है, जबकि दर्शनदिक्त जी आदि कई विद्वानों ने इसे अजमेर के निकटवर्ती हाँसोट से समीकृत किया है। अभयदेवसूरि को मलधारि विरुद प्राप्त था इस विषय में सभी साक्ष्य एक मत हैं। पर उन्हें यह मलधारि उपाधि किस चालुक्य राजा द्वारा प्राप्त हुई थी इस विषय में मतभेद है। हर्षपूरीय गच्छाचार्य मलधारि नरेन्द्रप्रभ ने अपने ग्रन्थ अलंकार महोदधि की प्रशस्ति में, एवं राजशेखर ने प्रबन्धकोश की प्रशस्ति में चालुक्य राजा कर्णद्वारा श्री अभयदेव को यह उपाधि प्रदान करने का उल्लेख किया है । जबकि इन्हें दुष्कर क्रियाशील देखकर चौलुक्य सिद्धराज जयसिह ने मलधारि विरुद प्रदान किया था, यह जिनप्रभ कहते हैं। चालुक्य राजाओं की वंशावली में कर्ण, सिद्धराज जयसिंह के पूर्ववर्ती थे। श्री राजशेखर ने प्रबन्धकोश' के अतिरिक्त रत्नाकरावतारिका १. यतीन्द्रसूरि अभिनन्दन ग्रन्थ-सं० मु० विद्याविजय, पृ० १५९, श्री राजेन्द्र प्रवचन कार्यालय भु: खुडाला, फालना, राजस्थान १९५८ २. गच्छे हर्षपुरीये गुणसेवधिरभयदेवसूरिभूत् । मलधारीत्यभिधाऽन्तरमधत्त: यः कर्णभूपकृतम् ॥ १॥ अलंकार महोदधि, सं० भगवानदास गान्धी, पृ० ३३९, ओरिएण्टल इंस्टी च्यूट बड़ौदा, १९४२ ३. श्री गूर्जरेन्द्रकर्णोद्वयोषित 'मलधारि विशदवरविरुद्धः । श्री अभयदेव सूरि ......प्रबन्धकोश प्रशस्ति ४. विविधतीर्थकल्प-जिनप्रभसूरि, सिंघी जैन सिरीज, पृ० ७७, ५.. श्री तिलकसूरि शिष्यः सूरिः श्रीराजशेखरो जयति ।। २ ॥ प्रबन्धकोश प्रशस्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525004
Book TitleSramana 1990 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1990
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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