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________________ पार्श्वनाथ जन्मभूमि मंदिर, वाराणसी का पुरातत्त्वीय वैभव ( उत्खनन में उपलब्ध सामग्री के आधार पर ) प्रो० ० सागरमल जैनः १ जैन परम्परा में काशी जनपद और उसको राजधानी वाराणसी का महत्त्वपूर्ण स्थान है । यह माना जाता है कि इस नगर में चार तीर्थङ्करों - सुपार्श्व, चन्द्रप्रभ, श्रेयांस और पार्श्व का जन्म हुआ था । इनमें से प्रथम तीन तो प्रागैतिहासिक काल के और पार्श्व ऐतिहासिक युग के माने जाते हैं। उनका काल लगभग ई० पूर्व आठवीं शताब्दी माना जाता है । जैन आगम और आगमिक व्याख्या साहित्य में पार्श्वनाथ की जन्म कल्याणक भूमि के रूप में वाराणसी नगरी का उल्लेख है । पुरातात्त्विक अन्वेषण एवं शोध के आधार पर ई० पूर्व आठवीं शताब्दी में वाराणसी नगरी का अस्तित्व प्रमाणित है, अतः इसे पार्श्व की जन्मस्थली के रूप में स्वीकार करने में पुरातात्त्विक दृष्टि से कोई बाधा नहीं है । अब हमारे सामने मुख्य प्रश्न यह है कि क्या यहाँ पार्श्व की जन्मभूमि पर किसी स्मारक मंदिर आदि का निर्माण हुआ ? और यदि हुआ तो कब हुआ ? इस प्रश्नके उत्तर के लिए जैन साहित्य और यहाँ से उपलब्ध पुरातात्त्विक साक्ष्यों का अध्ययन आवश्यक है । जैन आगमिक व्याख्या साहित्य में वाराणसी नगरी का विस्तारपूर्वक उल्लेख है । प्रज्ञापना में काशी की एक जनपद के रूप में गणना करते हुए वाराणसी को उसकी राजधानी बताया गया है । जैन ग्रन्थों में काशी की सीमा इस प्रकार निर्धारित की गयी है - पूर्व में मगध, पश्चिम में वत्स, उत्तर में विदेह और दक्षिण में कोशल । बौद्ध ग्रन्थों में काशी के उत्तर में कोशल जनपद स्थित बतलाया गया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525002
Book TitleSramana 1990 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1990
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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