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________________ ( ३९ ) तथापि, यह भी उल्लेखनीय है कि पुरुष और स्त्री की यह समानता ऊपरी है। श्रमण परंपरा से उद्भूत बौद्ध और जैन धर्म में व्यावहारिक दष्टि से स्त्रियों के प्रति अपेक्षाकृत कम उदारता प्रदर्शित की गयी है, जैसा कि इनके साध्वियों के लिए बनाये गये नियमों से स्पष्ट है । ऐसा प्रतीत होता है कि स्त्रियों पर घोर अविश्वास का भाव था, जिसके सन्दर्भो से जैन साहित्य भी भरा पड़ा है। संपूर्ण साधुओं, यहाँ तक कि एक नव-दीक्षित साधु की तुलना में भी एक साध्वी का चिर दीक्षित होने पर भी, सबसे नीचे का स्थान दिया जाना इस तथ्य की पुष्टि करता है और इससे संपूर्ण स्त्रीजाति के प्रति जैन दष्टिकोण का आभास होता है। इस विषय में दिगम्बर कठोरतर हैं जो मानते हैं कि स्त्री, पुरुष के रूप मे पुनर्जन्म लेकर ही मोक्ष प्राप्त कर सकती है। दृष्टिकोण की इन वास्तविकताओं के रहते हुये भी जैन संस्कृति को यह श्रेय दिया जाना चाहिये कि उनमें एक वर्ग तो ऐसा था, जिसने स्त्रियों को आत्मिक अनुभव का मार्ग उन्मुक्त रखा। श्रमण परंपरा का एक और महत्त्वपूर्ण लक्षण था संभ्रांत वर्ग की अपेक्षा जन-साधारण से अधिक मेल-मिलाप । भ्रमणशील साधू होने के कारण वे जन-साधारण से संपर्क में आते थे, इससे उनसे बात करने के लिए उनकी समझ में आने योग्य भाषा की आवश्यकता पड़ती थी। इस कारण, बुद्ध और महावीर ने लोकभाषाओं और प्राकृत को अपनी भाषा बनाने की महती उदारता प्रदर्शित की। उच्च वर्ग की भाषा संस्कृत थी और वह समाज के संभ्रांत वर्ग तक ही सीमित रही प्रतीत होती है । इस व्यावहारिक दृष्टिकोण से प्राकृत भाषा में विपुल और विविध साहित्य की सर्जना हुई। सर्जना की यह परंपरा मध्यकाल तक चलती रही जिसका प्रमाण है भट्टारकों, यतियों और गुरुओं द्वारा गुजराती, कन्नड़, हिन्दी, राजस्थानी आदि क्षेत्रीय भाषाओं में रचा गया विपुल साहित्य । इन क्षेत्रीय भाषाओं के माध्यम से जैन धर्म जन-साधारण तक पहँचा । श्रमण परंपरा के अनुरूप उसकी यह प्रवृति होनी ही चाहिए थी। श्रमण परंपराओं के जैन धर्म में चलते रहने का रहस्य एक अत्यन्त विशेष लक्षण में निहित है । श्रमण परंपरा के अनुरूप जैसा कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525002
Book TitleSramana 1990 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1990
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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