SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन प्रभु के सामने यह निशान बनाते हैं। इससे यह समर्थित होता है कि सम्प्रति 'जैन अशोक' और द्वितीय' चन्द्रगुप्त कहलाने का अधिकारी था और वह सुस्थिताचार्य और वङ्कचूल का समकालीन था। (मार्डन रिव्यू) सम्प्रति ने उज्जयिनी के समीप ढीपुरी नगरी में विमलयश को अधिकारी नियुक्त किया था। प्रस्तुत प्रबन्ध में अति उत्साह के कारण उसे राजा कहा गया है। विमलयश राजसत्ताधारी राजा भले ही न हो किन्तु वङ्कचूलप्रबन्ध के अनुसार सिंहगुहापल्ली का पल्लीपति अवश्य था और उसकी स्थिति आसपास के बीहड़ और पर्वतीय इलाकों में किसी स्थानीय राजा से कम न थी। पहली राजधानी में गुरु सुहस्ति ने सम्प्रति को जैन धर्म में दीक्षित किया और दूसरी राजधानी के समीप शिष्य सुस्थित ने वङ्कचूल को। वङ्कचूल द्वारा कामरूप-विजय पर प्रश्न चिन्ह लगाना पड़ता है। प्रबन्ध-कोश में वर्णन है कि वङ्कचूल को उज्जयिनी के राजा का सामन्त बन जाने के बाद कामरूप विजय के लिए जाना पड़ा। अन्य ग्रन्थों में वहाँ के राजा का नाम दुर्धर है। किन्तु टिंपुरी से असम की अत्यधिक भौगोलिक दूरी और यातायात के मन्दगामी साधनों को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि राजशेखर ने कामरूप-विजय की कल्पना जैनधर्म के महत्त्व को बढ़ाने के लिए की थी क्योंकि प्रबन्धकार शक्तिपूजा के एक प्रसिद्ध केन्द्र पर जैन धर्मावलम्बी की विजय दर्शाना चाहता था। सम्प्रति-कालीन सुस्थिताचार्य के चार महीनों के आपात-प्रवास से राजा वङ्कचूल का हृदय-परिवर्तन नहीं हुआ, किन्तु उनके द्वारा बतलाये गये चार नियमों ने उसकी क्रूरता को समाप्त कर उसे उदारमना राजा बना दिया। इस प्रकार राजशेखर ने बङ्कचूल को राजवर्ग में सम्मिलित करने का औचित्य भी दिया। ___ कश्मीर में नगरों को बसाये जाने की परंपरा कुषाणकाल में स्पष्ट दीख पड़ती है जैसे हुष्कपुर, जुष्कपुर और कनिष्कपुर । सातवाहन पुलमावि 'द्वितीय' ने एक नये शहर "नवनगर" की स्थापना की और "नवनगर स्वामी" की उपाधि धारण की । दक्षिण के होयसल नरेश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525002
Book TitleSramana 1990 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1990
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy