SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३१ ) बुद्ध इन विवादों से बचने की सलाह दे रहे थे, वहीं महावीर इनके समन्वय की एक ऐसी विधायक दृष्टि प्रस्तुत कर रहे थे, जिसका परिणाम स्याद्वाद है । स्याद्वाद विविध दार्शनिक एकान्तवादों में समन्वय करने का प्रयास करता है । उसकी दृष्टि में नित्यवाद, द्वैतवाद - अद्वैतवाद, भेदवाद - अभेदवाद आदि सभी वस्तु स्वरूप के आंशिक पक्षों को स्पष्ट करते हैं । इनमें से कोई भी असत्य तो नहीं है किन्तु पूर्ण सत्य भी नहीं है । यदि इनका कोई असत्य बनाता है तो वह आंशिक सत्य को पूर्ण सत्य मान लेने का उनका आग्रह ही है । स्याद्वाद अपेक्षा भेद में इन सभी के बीच समन्वय करने का प्रयास करता है और यह बताता है कि सत्य तभी असत्य बन जाता है, जबकि हम आग्रही दृष्टि से उसे देखते हैं । यदि हमारी दृष्टि अपने को आग्रह के ऊपर उठाकर देखे तो हमें सत्य का दर्शन हो सकता है । सत्य का सच्चा प्रकाश केवल अनाग्रही को ही मिल सकता है । महावीर के प्रथम शिष्य गौतम का जीवन स्वयं इसका एक प्रत्यक्ष साक्ष्य है । गौतम के केवल ज्ञान में आखिर कौन सा तत्त्व बाधक बन रहा था । महावीर ने स्वयं इसका समाधान करते हुए गौतम से कहा था- हे ( सत्य दर्शन ) सम्पूर्ण दर्शन गौतम मेरा तेरे प्रति जो ममत्व है यही तेरे केवल ज्ञान का बाधक है । महावीर की स्पष्ट घोषणा थी कि सत्य का आग्रह के घेरे में रहकर नहीं किया सकता । आग्रह बुद्धि या दृष्टि राग सत्य को असत्य बना देता है । सत्य का प्रगटन आग्रह में नहीं, अनाग्रह में होता है, विरोध में नहीं, समन्वय में होता है । सत्य का साधक अनाग्रही और वीतराग होता है, उपाध्याय यशोविजयजी स्याद्वाद की इसी अनाग्रही एवं समन्वयात्मक दृष्टि को स्पष्ट करते हुए अध्यात्मसार में लिखते हैं यस्य सर्वत्र समता नयेषु तनयेष्विव, तस्यानेकान्तवादस्य क्व न्यूनाधिकेशुसवो । तेन स्याद्वाद्वमालव्य सर्वदर्शन तुल्यता । मोक्षोदेश विशेषणा यः पश्यति सः शास्त्रवित् ॥ मध्यस्थमेव शास्त्रार्थो ये तच्चारु सिद्धयति । स एव धर्मवादः स्यादन्यद्वालिश वल्गनम् ॥ Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525001
Book TitleSramana 1990 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1990
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy