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________________ ( २९ ) और असत्य के मध्य एक तीसरी कोटि आंशिक सत्य या सम्भावित सत्य मानी जा सकती है । पुनः वस्तुतत्त्व की अनन्तधर्मात्मकता एवं स्याद्वाद सिद्धांत भी सम्भावित सत्यता के समर्थक हैं क्योंकि वस्तुतत्त्व की अनन्तधर्मात्मकता अन्य सम्भावनाओं को निरस्त नहीं करती है और स्याद्वाद उस कथित सत्यता के अतिरिक्त अन्य सम्भावित सत्यताओं को स्वीकार करता है । इस प्रकार जैन दर्शन की वस्तुतत्त्व की अनन्तधर्मात्मकता तथा प्रमाण, नय और दुर्नय की धारणाओं के आधार पर स्याद्वाद सिद्धांत त्रिमूल्यात्मक तर्कशास्त्र ( Three valued logic) या बहुमूल्यात्मक तर्कशास्त्र (Many valued logic) का समर्थक माना जा सकता है किन्तु जहां तक सप्तभंगी का प्रश्न है उसे त्रिमूल्यात्मक नहीं कहा जा सकता, क्योंकि उसमें नास्ति नामक भंग एवं अवक्तव्य नामक भंग क्रमशः असत्य एवं अनियतता (Indeterminate) के सूचक नहीं हैं । सप्तभंगी का प्रत्येक भंग सत्य - मूल्य का सूचक है यद्यपि जैन विचारकों ने प्रमाण - सप्तभंगी और नय - सप्तभंगी के रूप में सप्तभंगी के जो दो रूप माने हैं, उसके आधार पर यहाँ कहा जा सकता है कि प्रमाण - सप्तभंगी के सभी भंग सुनिश्चित सत्यता और नय सप्तभंगी के सभी भंग सम्भावित या आंशिक सत्यता का प्रतिपादन करते हैं । असत्य का सूचक तो केवल दुर्नय ही है । अतः सप्तभंगी त्रिमूल्यात्मक नहीं है । किन्तु मेरे शिष्य डॉ भिखारी राम यादव ने अपने प्रस्तुत शोध निबन्ध में अत्यन्त श्रमपूर्वक सप्तभंगी को सप्तमूल्यात्मक सिद्ध किया है और अपने पक्ष के समर्थन में समकालीन पाश्चात्य तर्कशास्त्र से प्रमाण भी प्रस्तुत किये हैं। आशा है विद्वज्जन उनके इस प्रयास का सम्यक् मूल्यांकन करेंगे । आज मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि कि मेरे ही शिष्य ने चिन्तन के क्षेत्र में मुझसे एक कदम आगे रखा है । हम गुरु-शिष्य में कौन सत्य है या असत्य है यह विवाद हो सकता है यह निर्णय तो पाठकों को करना है; किन्तु अनेकान्त शैली में अपेक्षाभेद से दोनों भी सत्य हो सकते है । वैसे शास्त्रकारों ने कहा है कि शिष्य से पराजय गुरु के लिए परम आनन्द का विषय होता है क्योंकि वह उसके जीवन की सार्थकता का अवसर है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525001
Book TitleSramana 1990 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1990
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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