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________________ (११९) प्रस्तुत कृति 'सिद्धगिरि का यात्री' उपाध्याय श्री केवलमुनि का एक अनुपम लघु उपन्यास है। इसमें कथा के माध्यम से परोपकारी वृत्ति की प्रशंसा तथा स्वार्थः वृत्ति की भर्त्सना की गई है । आज के स्वार्थपरक परिवेश में यह पाठकों को परोपकारिता की प्रेरणा देगा, ऐसा हमारा विश्वास है । इसमें भाई-बहन (पृ. ६७१४७ ) नामक एक अन्य प्रेरणास्पद कहानी भी है। एतदर्थ लेखक अभिवाद्य हैं। 'महत्तराश्री मृगावतीजी' : संपा० रमणलालजी शाह; प्रकाशकश्री वल्लभसूरि स्मारक निधि, बम्बई । पृष्ठ-१७०, मूल्य पचास रुपया __ प्रस्तुत स्मारिका पूज्या श्री मृगावतीजी का भव्य एवं पवित्र जीवन वृत्ति प्रस्तुत करती है। इसके अतिरिक्त पूज्य साध्वीजी के धार्मिक एवं सामाजिक अनुष्ठानों जैसे जैन संस्थाओं को आर्थिक सहायता प्रदान करवाना, सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करवाना इत्यादि का भी विवरण है । आशा है यह स्मारिका प्रेरणादायिनी सिद्ध होगी। इसके लिए सम्पादक महोदय धन्यवाद के पात्र हैं। x _"जिनदेव दर्शन' : मोहनलालदलीचंद देसाई, प्रकाशक :- श्री महावीर जैन विद्यालय, बम्बई, १९८९, मूल्य बारह रुपये। प्रस्तुत पुस्तक में सामायिकादि षडावश्यक के अतिरिक्त चतुविशति स्तवन, चैत्यवंदनादि आचार के नियमों पर बल दिया गया है। गुजराती भाषा में लिखित यह पुस्तक प्रेरणादायिनी सिद्ध होगीऐसी अपेक्षा है। 'आरामशोभारासमाला' : संपा० जयंत कोठारी; प्रकाशक: - डॉ० के० आर० चन्द्र, मानद मन्त्री-प्राकृत विद्या विकास फण्ड, . ७७।३७५, सरस्वतीनगर अहमदाबाद-१५ । आरामशोभाकथा जैन परम्परा की एक प्रसिद्ध कथा है जो .... ओरमान सन्तान के भाग्योदय के कथा घटक को समाहित किये हुए: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525001
Book TitleSramana 1990 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1990
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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