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जहां तक मानव व्यक्तित्व की बात है वह बहुआयामी है । उसके विविध रूप परिलक्षित होते हैं। मानवों में शारीरिक संरचना संबंधी विभिन्नता, स्वभावगत विविधता, रुचिवैचित्र्य, बौद्धिक योग्यता संबंधी विभिन्नताएँ और आध्यात्मिक विकास के विविध स्तर पाये जाते हैं। ये विविधताएँ चिरकाल से रही हैं। विविधताएँ एक आनुभविक सत्य हैं, इन्हें झुठलाया नहीं जा सकता । इनके आधार पर मानव को विभिन्न वर्गों में विभाजित किया जाता है।
मानव व्यक्तित्व के मनोवैज्ञानिक विश्लेषण से इसके तीन वर्ग मिलते हैं- (१) बहिर्मुखी (२) अन्तर्मुखी और (३) उभयमुखी।
(१) बहिर्मुखी-सामाजिक एवं प्राकृतिक पर्यावरण में अत्यधिक रुचि लेने वाले व्यक्ति को बहिर्मुखी कहा जाता है। ऐसे व्यक्ति सामाजिक कार्यों में अधिक रुचि लेते हैं, अपने विषय में कम चिन्तित रहते हैं। ‘इंग्लिश एण्ड इंग्लिश' के अनुसार बहिर्मुखता का शाब्दिक अर्थ है 'अपने से बाहर जाना, अपने प्राकृतिक तथा सामाजिक पर्याबरण की वस्तुओं में अधिक रुचि लेना और अपने विचारों तथा भावनाओं की उपेक्षा करना।
. (२) अन्तर्मुखी - जिन व्यक्तियों की प्रवृत्ति समाज से दूर रहने की होती है, वे अन्तर्मुखी कहलाते हैं। ये लोग सामाजिक कार्यों में भाग न लेकर अपने में ही खोये से रहते हैं। प्रसिद्धग्रंथ 'इंग्लिश एण्ड इंग्लिश' में अन्तर्मुखी की व्याख्या इस प्रकार की गई है-'सामाजिक संबंधों से बचना, अपने ही विचारों में मग्न रहना ।' अन्तर्मुखता के कारण व्यक्ति का दृष्टिकोण वस्तुनिष्ठ नहीं हो पाता। वह सभी वस्तुओं का मूल्यांकन करते समय अपने को केन्द्रीय स्थान में रखता है । मानसिक रोगियों में अन्तर्मुखिता अत्यधिक पायी जाती है।
१-इंग्लिश एण्ड इंग्लिश, पृ० १९७ विशेष द्रष्टव्य 'व्यक्तित्वमनो
विज्ञान'-सीताराम जायसवाल पृ०-१७० २-वही. पृ० १७०
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