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जैनविद्या 26
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अप्रेल 2013-2014
अष्टपाहुड में श्रमण और श्रमणाभास
- डॉ. (कु.) आराधना जैन 'स्वतंत्र'
आचार्य कुन्दकुन्द जैन दर्शन, सिद्धान्त, साहित्य एवं शौरसेनी प्राकृत के मूर्धन्य मनीषी और आध्यात्मिक चिन्तक थे और अनेकान्त दृष्टि के प्रबल समर्थक भी। उनके चिन्तन से भारतीय मनीषा प्रभावित हई। यही कारण है तीर्थंकर महावीर और गौतम गणधर के बाद की उत्तरवर्ती जैनाचार्यों की परम्परा में अनेक महान आचार्यों में कुन्दकुन्दाचार्य का नाम श्रद्धापूर्वक सबसे पहले स्मरण किया जाता है -
मंगलं भगवान्वीरो मंगलं गौतमो गणी।
मंगलं कुन्दकुन्दाों जैन धर्मोऽस्तु मंगलं ।। आचार्य कुन्दकुन्द द्वारा रचित उपलब्ध कृतियाँ हैं - समयपाहुड (समयसार), पवयणसारो (प्रवचनसार), णियमसारो (नियमसार), पंचत्थिकायसंगहो (पंचास्तिकायसंग्रह), अट्ठपाहुड (अष्टपाहुड), बारस अणुवेक्खा (द्वादशानुप्रेक्षा), भत्ति संगहो (भक्ति संग्रह)। इनमें अट्ठपाहुड आठ पाहुडों का संग्रह है, इसमें 503 गाथाएँ हैं जो इस प्रकार हैं - दसण पाहुड (दर्शन प्राभृत) 36, सुत्तपाहुड (सूत्रप्राभृत) 27, चारित्त पाहुड (चारित्रप्राभृत) 45, बोध पाहुड (बोधप्राभृत) 62, भावपाहुड (भावप्राभृत) 165, मोक्ख पाहुड (मोक्षप्राभृत) 106, लिंग पाहुड (लिङ्ग प्राभृत) 22, सील पाहुड (शील प्राभृत) 400
अष्टपाहुड पर पं. जयचन्दजी छाबड़ा द्वारा (ढूंढारी भाषा में) लिखित भाषा वचनिका