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________________ जैन विद्या 26 चैत्यगृह - दूसरा शब्द है चैत्यगृह जिसका मंदिर अर्थ प्रसिद्ध है। बोधपाहुड के अनुसार चैत्य अर्थात् चेतनात्मा (शुद्धात्मा) का निवास मुनि ही चैत्यगृह है। स्व-पर आत्मा को जाननेवाला बुद्ध, पंचमहाव्रतपालन से शुद्ध, ज्ञानमय मुनि, चैत्यगृह है अथवा बंधमोक्ष, सुख-दुख का अनुभव करनेवाला आत्मा चैत्य व चैत्य का निवास मुनि चैत्यगृह है। चैत्यगृह को षट्कायहितंकर कहा गया है। सम्पूर्ण अहिंसा का पालक मुनि ही षट्काय के जीवों का रक्षक होता है। 12 जनप्रतिमा जिनप्रतिमा का अर्थ तीर्थंकर की पाषाणादि निर्मित प्रतिमा लिया जाता है। आचार्य कुन्दकुन्ददेव मुनि की चलती-फिरती देह को ही जिनमार्ग में कही हुई जिनप्रतिमा कहते हैं। जिनप्रतिमा तो बाह्य अनुकृति होने से बाह्य प्रतिमा (स्थापित प्रतिमा) है। स्थापना सत्य व्यवहार है। जिनका अर्थ तो निर्ग्रन्थ वीतराग है, अतः जिनके गुण जहाँ प्रतिबिम्बित हों वह रत्नत्रयधारी निर्ग्रन्थ वीतराग मुनि ही जिनप्रतिमा है, इसे ही आचार्यश्री जंगमप्रतिमा या संयत प्रतिमा कहा है। अगली दो गाथाओं में सिद्धस्थान में विराजमान सिद्धों को व्युत्सर्ग प्रतिमा कहा है। 13 - 69 दर्शन - दर्शन का अर्थ दिखलानेवाला किया है। सम्यक्त्व, संयम, सुधर्म, निर्ग्रन्थ, ज्ञान ये मोक्षमार्ग हैं। इन्हें दिखानेवाला ही जिनमार्ग में दर्शन कहा गया है। इस प्रकार दर्शन का अर्थ सिद्धान्त न लेकर उसका उपदेशक मुनि किया है। जैसे पुष्प गन्धमय और दुग्ध घृतमय होता है, उसी प्रकार दर्शन ज्ञानमय होता है। ज्ञानमय रूपस्थ मुनि ही दर्शन है। 14 - जिनबिम्ब जिन अर्थात् वीतराग सर्वज्ञ का प्रतिबिम्ब जिनबिंब है। जिनेन्द्र भगवान् की पाषाणादि निर्मित प्रतिमा तो स्थापित प्रतिमा है। बाह्याकृति का प्रतिरूप है। जिन तो ज्ञानी व वीतरागी का नाम है और ऐसे जिन का बिम्ब मुनि (आचार्य) ही है, क्योंकि वही ज्ञानमय, संयमी व वीतरागी है। जिन ने जिस प्रकार भव्यों को मोक्षमार्ग प्रशस्त किया उसी प्रकार मुनि (आचार्य) भी शिक्षा व दीक्षा देते हैं, जो शुद्ध व कर्मक्षय का कारण होती हैं। उनकी ही पूजा, प्रणाम, विनय व वात्सल्य करना चाहिए। उनमें ही चेतना भाव व ज्ञान - दर्शन पाया जाता है। 15 जिऩमुद्रा - मुनि ही अर्हन्त की तरह शिक्षा-दीक्षा देने के कारण अर्हन्तमुद्रा है। ज्ञानी मुनि ही दृढ़संयम, इन्द्रियनिग्रह व कषायरहित होने से जिनमुद्रा है। इस प्रकार जिनमुद्रा अर्थ भी मुनि ही है। 16
SR No.524771
Book TitleJain Vidya 26
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2013
Total Pages100
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size6 MB
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