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प्रकाशकीय
जैनविद्या संस्थान की शोध-पत्रिका 'जैनविद्या' का यह अंक ‘अष्टपाहुड विशेषांक' के रूप में प्रकाशित कर अत्यन्त प्रसन्नता है। ___'अष्टपाहुड' प्राकृत भाषा में निबद्ध एक आध्यात्मिक रचना है, इसमें आठ विषयों को लक्ष्य किया गया है। इसके रचयिता हैं - ‘आचार्य कुन्दकुन्द'। आचार्य कुन्दकुन्द एक उच्चकोटि के दार्शनिक, अतिशय ज्ञानसम्पन्न, आध्यात्मिक विद्वान थे। ये दिगम्बर जैन परम्परा के एक दृढ़स्तम्भ हैं। आचार्य कुन्दकुन्द तीर्थंकर महावीर व गौतम गणधर के बाद उत्तरवर्ती जैनाचार्यों की परम्परा में सबसे पहले स्मरण किये जाते हैं। जैन दर्शन व संस्कृति के उन्नयन में इनका साहित्यिक अवदान अनुपम है।
आचार्य कुन्दकुन्द के व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व के आधार से संस्थान द्वारा पूर्व में भी 'जैनविद्या' का एक अंक ‘आचार्य कुन्दकुन्द विशेषांक' के रूप में प्रकाशित है।
'अष्टपाहुड' इनकी एक विशिष्ट एवं प्रमुख रचना है। यह अंक इसी रचना पर आधारित है। इस अंक के विन्यास में जिन विद्वान लेखकों का योगदान है उन सभी के प्रति आभार व्यक्त करते हैं। पत्रिका के सम्पादक, सम्पादक-मण्डल के सदस्य, सहयोगी सम्पादक सभी धन्यवादाह हैं।
न्यायाधिपति नरेन्द्रमोहन कासलीवाल
महेन्द्रकुमार पाटनी अध्यक्ष
प्रबन्धकारिणी कमेटी, . दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी
मंत्री