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जैनविद्या 26
- जिसके प्रथम चरण में 12, द्वितीय में 18 मात्राएँ हों, जो प्रथम में है वही तृतीय में हो और चौथे चरण में 15 मात्राएँ हों वह गाथा छन्द है। इस प्रकार गाथा छंद में 57 मात्राएँ होती हैं। निम्न उल्लेख से यह स्पष्ट होता है।
1.
2.
3.
4.
5.
6.
7.
8.
9.
10.
11.
12.
13.
14.
12+18= 30
दंसणमूलो धम्मो,
27
ऽ ऽ ऽ । । ऽ ऽ = 12,
ऽ ।। ऽ ऽ
। ऽ ऽ ऽ = 15 =
57
गाथा भेद - प्राकृत पैंगलम् (60-61) में गाथा के सत्ताईस भेद कहे गए हैं, जो आचार्य कुन्दकुन्द के अट्ठपाहुड में प्रायः विद्यमान हैं -
ऽ।। ऽ ऽ ऽ ऽ = 12,
तंदू
सकण्णे,
गाहा
लच्छी
रिद्धि
बुद्धि
सव्वाए गाहाए सत्ता वण्णाइ होंति अत्ताइँ। पुव्वद्धम्मि अ तीसा, सत्ताईसा परद्धम्मि ।।
लज्जा
विज्जा
खमा
देही
गोरी
धाई (धत्ति)
चुण्णा
छाया
कंति
12+15=27
उवइट्ठो
।। ऽऽ ।।। ऽ। ऽ ऽ ऽ = 18 = 30 दंसणहीणो ण वंदिव्वो ||2||
महामाया
कित्ति
गुरु
2 2 2 2 2 2 2 2 2
27
26
25
24
23
22
21
20
30+27= 57 मात्राएँ। यथा जिणवरेहिं सिस्साणं ।
19
18
17
16
15
14
लहु 3
5
7
9
11
13
15
17
2 2 2 2 2 2
19
21
23
25
27
-
29
अक्खर
£ £ £ £ w w w w w w w w w 3
30
31
32
33
34
36
38
39
40
41
42
19
43