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________________ जैनविद्या 25 (11) वसट्टमरण - आर्त और रौद्रध्यानपूर्वक मरण को वसट्टमरण कहा है। इसके चार भेद हैं - इन्द्रियवसट्टमरण, वेदनावसट्टमरण, कषायवसट्टमरण और नोकषायवसट्टमरण (पृ. 57-59)। (12-13) विप्पाणमरण एवं गिद्धपुट्टमरण - इनका निषेध और अनुज्ञा दोनों नहीं हैं। दुर्भिक्ष में, भयानक जंगल में, पूर्व शत्रु या दुष्ट राजा अथवा चोर के भय से, तिर्यंचकृत उपसर्ग से, ब्रह्मचर्यव्रत का विनाश आदि दोष चारित्र में होने पर संसार से विरक्त और पाप से भयभीत साधु कर्मों का उदय जानकर उसे सहने में असमर्थ होने से उससे निकलने का उपाय न होने पर पापभीरु विराधनापूर्वक मरण से डरता हुआ सोचता है यदि संयम से भ्रष्ट होता हूँ तो संयम के साथ दर्शन से भी भ्रष्ट होता हूँ। ऐसा विचार कर वह साधु किसी निदान के बिना अर्हन्त के निकट आलोचना-प्रायश्चित्त लेकर शुभलेश्यापूर्वक श्वासोच्छवास का निरोध करता है इसे 'विप्पाणमरण' कहा है। शस्त्र-ग्रहण से होनेवाले मरण को 'गिद्धपट्टमरण' संज्ञा दी गयी है (पृ. 60-61)। मरण के सत्रह भेदों में तेरह को समझाकर अन्य पाँच मरण - पण्डितपण्डितमरण, पण्डितमरण, बालपण्डितमरण, बालमरण, बालबालमरण समझाये गये हैं। इनके लिए निम्नलिखित गाथा द्रष्टव्य है - पंडिदपंडिदमरणं पंडिदयं बालपंडिदं चेव। बालमरणं चउत्थं पंचमयं बालबालं च।।26।। आगम के अनुसार जिसका पाण्डित्य ज्ञान, दर्शन और चारित्र में अतिशयशाली है उसे पण्डित-पण्डित कहा है। पाण्डित्य के प्रकर्ष से रहित पाण्डित्य वाले को पण्डित, पूर्व में व्याख्यान बालपन और पाण्डित्य दोनों जिसमें होते हैं वह बालपण्डित, जिसमें चारों प्रकार का पाण्डित्य नहीं है वह बाल है और जो सबसे हीन है वह बाल-बाल है। पृ. 61 पण्डितपण्डितमरण, क्षीण कषाय और अयोगकेवली का कहा है - पंडितपंडितमरणे खीणकसाया मरंति केवलिणा।।27।। विरताविरत श्रावक का मरण बालपण्डितमरण है - विरदाविरदा जीवा मरंति तदियेण मरणेण।।27।।
SR No.524770
Book TitleJain Vidya 25
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages106
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size6 MB
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