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________________ सम्पादकीय “आचार्य शिवार्य द्वारा रचित 'भगवती आराधना' जैन आचारशास्त्र-परम्परा का प्रमुख ग्रन्थ है।" इसे 'मूलाराधना' नाम से भी जाना जाता है। यह जैन साधुओं के आचार का वर्णन करनेवाला एक प्राचीन एवं वृहद् ग्रन्थ है। आचार्य शिवार्य का दूसरा नाम 'शिवकोटि' भी था। "डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन ‘प्रेमी अभिनन्दन ग्रन्थ' में प्रकाशित अपने लेख - 'भगवती आराधना के कर्ता शिवार्य' में इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि आचार्य का मूल नाम शिव था जिसके साथ ‘भूति', 'कोटि', 'कुमार', 'दत्त' आदि शब्द उल्लेखकर्ताओं ने स्वरुचि अनुसार अथवा भ्रमवश जोड़ दिये हैं और यह कि ये शिवार्य भद्रबाहु द्वितीय के पश्चात् तथा आचार्य कुन्दकुन्द से पूर्व, सन् ईसवी के प्रारम्भ के लगभग हुए थे।" आचार्य शिवार्य ने अपनी रचना में कहीं भी अपने समय का निर्देश नहीं किया, इससे इनका निश्चित समय का निर्धारण नहीं किया जा सका, किन्तु इनकी रचना 'भगवती आराधना' की टीकाओं के आधार पर इनके समय का आकलन किया गया है। “आचार्य शिवार्य का समय आचार्य कुन्दकुन्द के आस-पास होना चाहिए।" डॉ. हीरालाल जैन 'भगवती आराधना' का रचनाकाल ईसा की द्वितीय-तृतीय शताब्दी मानते हैं। ___" 'भगवती आराधना' में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र और सम्यक्तपरूप चार आराधनाओं का कथन किया गया है।" " 'भगवती आराधना' का मुख्य प्रतिपाद्य विषय है - सल्लेखना और मरण के प्रकार। यद्यपि मरण के 17 भेद हैं, पर ग्रन्थकार ने इसमें पाँच प्रकार के ही मरणों का वर्णन किया है - 1. पण्डित-पण्डित मरण, 2. पण्डित मरण, 3. बाल पण्डित मरण, 4. बाल मरण और 5. बाल-बाल मरण। पण्डित मरण के तीन भेद हैं - भक्तप्रतिज्ञा, प्रायोपगमन और इंगिनीमरण। इन मरणों का विस्तार से वर्णन किया गया है।" (vii)
SR No.524770
Book TitleJain Vidya 25
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages106
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size6 MB
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