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________________ जैनविद्या 25 काल जानकर समाधिमरण ग्रहण किया। प्रभाचन्द्रदेव, रामचन्द्र मलधारीदेव, मल्लिषेण, सकलचन्द्र, शान्तकरसी, आर्यदेव आदि साधकों के नाम भी स्मरणीय हैं। पंचपद के उच्चारण के साथ समाधिमरण अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु इन पंचपरमेष्ठियों का प्रतिनिधित्व करनेवाले णमोकारमंत्र की आराधना के माध्यम से भी समाधिमरण की प्रक्रिया पूरी की जाती है। आचार्य कुन्दकुन्द ने प्राकृत पंचपरमेष्ठी भक्ति और पूज्यपाद ने संस्कृत पंचपरमेष्ठी भक्ति में इन पंचपरमेष्ठियों के स्वरूप को स्पष्ट किया है। ब्रह्मदेव ने 'पंचनमस्कार' में 12,000 पद्यों में यही कार्य विस्तार से किया है (द्रव्यसंग्रह, पृ. 113)। अरिहन्त और सिद्ध की भक्ति से भी गृहस्थों को सिद्धि मिल सकती है। जीवन में समागत कठिनाइयों को दूर करने के लिए भी पंचपरमेष्ठियों का जप किया जाता है। दर्शन प्रतिमा में यही कहा जाता है कि पंचपरमेष्ठियों की शरण में जाने से मुक्ति भी प्राप्त हो सकती है (रत्न. श्राव. 137)। इसे नामस्मरण भी कहा जाता है। सालम्बन ध्यान भी यही है। ‘णमो अरिहंताण, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं' इसे णमोकारमंत्र कहते हैं। इसमें 35 अक्षर हैं। इसके संक्षिप्त उच्चारण से भी सिद्धि प्राप्त हो सकती है। जैसे ‘अरिहंत सिद्ध आइरिय, उवज्झाय-साधु' (16 अक्षर); अरिहंत सिद्ध; म णमो सिद्धाणं'; 'अ सि आ उ सा'; 'अरिहंत सिद्ध'; 'अरिहंत'; 'अ सि साहु'; 'सिद्ध' या '' का भी जप किया जा सकता है। पदः अर्हत्, अशरीर, आचार्य, उपाध्याय और मुनि पदों से प्रथम अक्षर लेकर बनाया गया है। जिनसेनाचार्य ने आदि पुराण (245-250) में किस पद का उच्चारण या ध्यान कहाँ पर किया जाना चाहिए, यह भी बताया है। जैसे - सिद्ध परमेष्ठी का ललाट में, अरिहंत परमेष्ठी का हृदय में, आचार्य का शिर में, उपाध्याय और साधु का दोनों भुजाओं में उच्चारण या ध्यान करने से भवबाधा दूर हो जाती है। __इस णमोकार मंत्र को पंचनमस्कार, पंचगुरुस्मरण, पंचपरमेष्ठीनमस्कार पंचपरमेष्ठीपद, पंचाक्षरपद आदि नामों से भी अभिहित किया जाता है। यह सकल मंगल का कारण है। अनुपम निःश्रेयस साधन करण है, अखिल मलहारी है,
SR No.524770
Book TitleJain Vidya 25
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages106
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size6 MB
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