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________________ जैनविद्या 25 अप्रेल 2011-2012 'भगवती आराधना' में समाधिमरण की आराधना विधि - डॉ. भागचन्द्र ‘भास्कर' आचार्य शिवार्य कृत 'भगवती आराधना' समाधिमरण की आराधना-विधि के लिए एक प्राचीनतम दीपस्तम्भ है। उसी के आधार पर उत्तरकालीन आराधनाविषयक साहित्य का निर्माण हुआ है। इस आलेख में हम समाधिमरण की आराधना-विधि का चित्रण करते हुए 'भगवती आराधना' के विषय को संक्षेप में प्रस्तुत करेंगे, जिससे विषय का स्पष्टीकरण अधिक सबलतापूर्वक हो सके। इसी सन्दर्भ में हमने श्रवणबेलगोल के इतिहास को भी तीन चरणों में विभाजित करने का प्रयत्न किया है। मरण-विधि प्रकार ___ मरण, विगम, विनाश, विपरिणाम - ये सभी शब्द समानार्थक हैं। उत्पन्न हुई पर्याय के विनाश का नाम मरण है अथवा प्राण-विसर्जन का नाम मरण है। 'भगवती आराधना' में इसके 17 प्रकारों का उल्लेख है (गाथा 25)। भगवती सूत्र में यह संख्या 14 है। वहाँ मूल भेद दो हैं - बालमरण और पण्डितमरण। बालमरण के 12 भेद हैं और पण्डितमरण के दो भेद हैं - पादोपगमनमरण और भक्तप्रत्याख्यानमरण। भगवती आराधना के सत्तरह प्रकार के मरणों में तीन मरण उत्तम माने जाते हैं - प्रायोपगमन, इंगिणी और भक्त प्रत्याख्यान (गा. 25)।
SR No.524770
Book TitleJain Vidya 25
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages106
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size6 MB
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