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________________ जैनविद्या 25 अप्रेल 2011-2012 17 भगवती आराधना में वर्णित द्वादश भावनाओं का स्वरूप - डॉ. राजेन्द्रकुमार बंसल 'भगवती आराधना' आचार्य शिवार्य/शिवकोटि की महत्त्वपूर्ण कृति है। इसमें मुनिचर्या के प्रायः सम्पूर्ण अंगों पर बृहद् प्रकाश डाला है। यह आचार ग्रन्थ है। आचार्य शिवकोटि ने भगवती आराधना की अंतिम प्रशस्ति-गाथाओं में अपनी गुरु-परम्परा का उल्लेख किया है। इसके अनुसार आर्य जिननन्दिगणी, आर्य सर्वगुप्तगणि और आर्यमित्रनन्दि के चरणों के निकट मूलसूत्रों और उनके अर्थ को अच्छी तरह समझकर पूर्वाचार्यों द्वारा निबद्ध हुई आराधनाओं के कथन का उपयोग करके पाणितल-भोजी (करतल पर भोजन करनेवाले) शिवार्य ने यह आराधना-ग्रन्थ अपनी शक्ति के अनुसार रचा है। प्रशस्ति में वर्णित तीन गुरुओं की गुरु-परम्परा आदि का कोई विवरण उपलब्ध नहीं है। ‘जैनधर्म के प्राचीन इतिहास' (द्वितीय भाग) में पं. श्री परमानन्द शास्त्री ने भगवती आराधना और आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रंथों की गाथाओं का तुलनात्मक अध्ययन कर यह सिद्ध किया कि आचार्य शिवार्य आचार्य कुन्दकुन्द के बहुत बाद हुए हैं, किन्तु पूज्यपाद देवनन्दीजी के पूर्ववर्ती हैं। जिनसेनाचार्य ने आदिपुराण के प्रारम्भ में शिवकोटि मुनीश्वर को नमस्कार किया है (1/49)।
SR No.524770
Book TitleJain Vidya 25
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages106
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size6 MB
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