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________________ जैनविद्या 25 ___90 इसके अतिरिक्त कविवर सूरचन्द ने तो अपनी प्रसिद्ध रचना 'समाधिमरण पाठ भाषा' का निर्माण ही पूरी तरह 'भगवती आराधना' के आधार पर किया है। उसके लगभग सभी छन्दों पर 'भगवती आराधना' का गहरा प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। उदाहरण भी उन्हीं सुकुमाल, सुकोशल, गजकुमार, सनत्कुमार, एणिकसुत, भद्रबाहु, ललितघटादि, धर्मघोष, श्रीदत्त, वृषभसेन, अभयघोष, विद्युच्चर, चिलातपुत्र, दंडक, अभिनन्दनादि, सुबन्धु, आदि समाधिप्राप्त महामुनियों के दिये हैं, जो ‘भगवती आराधना' में उपलब्ध होते हैं। प्रमाणस्वरूप ग्रंथ की 1534 से 1556 तक की गाथाएँ देखनी चाहिए। 'भगवती आराधना' में अनेकानेक गाथाएँ तो ऐसी भी मिलती हैं जिन पर एकसाथ अनेक हिन्दी-कवियों ने काव्यरचना की है। उदाहरणार्थ 'भगवती आराधना' की निम्नलिखित गाथाएँ देखिए - सहेण मओ रूवेण पदंगो वणगओ वि फरिसेण। मच्छो रसेण भमरो गंधेण य पाविदो दोसं।।1347।। इदि पंचहि पंच हदा सददरसफरिसगंधरूवेहिं। इक्को कहं ण हम्मदि जो सेवदि पंच पंचेहिं।।1348।। - वन में विचरण कर रहा हरिण व्याध (शिकारी) के मनोहर गीत को सुनकर आनन्दित होता हुआ अपनी आँखें मूंद लेता है, तभी व्याध अपने तीक्ष्ण बाणों से उसका प्राणान्त कर देता है। (शब्द, कर्ण-इन्द्रिय का विषय) __ - पतंगा दीपक की लौ के अनुराग के कारण उस पर मँडराता है और अन्ततः उसमें जलकर प्राण गँवा बैठता है। (रूप, चक्षु-इन्द्रिय का विषय) । - विशालकाय हाथी हथिनी के प्रति अनुराग के कारण धोखे से बनाई । गई खाई में गिर जाता है, मारा जाता है। (स्पर्शन-इन्द्रिय का विषय) ___ - फूलों के रस का पान करने के लोभ में भंवरा विषवृक्ष के फूल की गंध से प्राण खो देता है। (गंध, घ्राण-इन्द्रिय का विषय) - मछली रसना इन्द्रिय की लोलुपता से काँटे-युक्त भोजन कर मारी जाती है। (स्वाद, रसना-इन्द्रिय का विषय) इस प्रकार केवल एक इन्द्रिय की लोलुपता के कारण ये जीव अपने प्राण गँवा बैठते हैं तब जो मनुष्य पाँचों इन्द्रियों के विषय-सेवन के लिए लोलुप है उसका क्या हाल होगा!
SR No.524770
Book TitleJain Vidya 25
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages106
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size6 MB
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