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________________ जैन विद्या 24 1.2.1.3. हेत्वाभास ध्यातव्य है - सामान्यतः हेत्वाभास की चर्चा अनुमान के अन्त में की जाती है । किन्तु हेतु की अवधारणा को सही रूप में समझने के लिए यह आवश्यक है कि हेत्वाभास का ज्ञान हो। अतः यहाँ हेतु का प्रकरण होने के कारण हेत्वाभास की चर्चा यहीं की जा रही है। सामान्यतः हेतु के आभास को हेत्वाभास कहते हैं, अर्थात् जो साधन साध्य को सिद्ध करने में समर्थ नहीं है, जो वस्तुतः हेतु नहीं है किन्तु हेतु के समान प्रतीत होता है उस अहेतु का हेतु के रूप में आभास 'हेत्वाभास' कहलाता है । प्रभाचन्द्र ने प्रमेयकमलमार्त्तण्ड में हेत्वाभास का लक्षण किया है - . तद्विपरीतास्तु हेत्वाभासाः " 37 अर्थात् (साध्य के साथ जिसका अविनाभाव निश्चित है वह हेतु है और उसके 'विपरीत हेत्वाभास । अन्य शब्दों में, साध्य के साथ जिसका अविनाभाव निश्चित नहीं है वह हेत्वाभास है। माणिक्यनन्दी के अनुसार हेत्वाभास चार प्रकार का है - 1. असिद्ध, 2. विरुद्ध, 3. अनेकान्तिक और 4. अकिञ्चित्कर | 38 1. असिद्ध हेत्वाभास माणिक्यनन्दि ने असिद्ध हेत्वाभास का लक्षण किया है - - 66 89 66 'असत्सत्तानिश्चयोऽसिद्धः" 6.22 (5.22) अर्थात् जिस हेतु की सत्ता का अभाव हो अथवा निश्चय न हो, उसे 'असिद्धहेत्वाभास' कहते हैं। असिद्ध हेत्वाभास के दो भेद हैं. - (1) स्वरूपासिद्ध और ( 2 ) सन्दिग्धासिद्ध | 39 (1) स्वरूपासिद्ध हेत्वाभास - जिस हेतु का स्वरूप से ही अभाव हो, अर्थात् जिस हेतु की साध्य में सत्ता नहीं हो, उसे 'स्वरूपासिद्ध हेत्वाभास' कहते हैं, जैसे - शब्द परिणामी है; क्योंकि वह चाक्षुष है (चक्षु से जाना जाता है ) " इस अनुमान में 'चाक्षुष' हेतु है जो स्वरूप से ही असिद्ध है; क्योंकि शब्द स्वरूप से श्रावण है न की चाक्षुष । अतः शब्द में चाक्षुष का अभाव होने के कारण वह स्वरूप से असिद्ध है । (2) सन्दिग्धासिद्ध हेत्वाभास - जिस हेतु के रहने का निश्चय न हो, अर्थात् सन्देह हो, उसे ‘सन्दिग्धासिद्ध हेत्वाभास' कहते हैं, जैसे मुग्ध बुद्धि पुरुष ( जिसने अग्नि और धूम के सम्बन्ध को यथावत् नहीं जाना है, ऐसा भोला-भाला व्यक्ति अथवा अल्पज्ञ बुद्धिवाला व्यक्ति) के प्रति कहना कि यहाँ अग्नि है; क्योंकि यहाँ धूम है । इस
SR No.524769
Book TitleJain Vidya 24
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2010
Total Pages122
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size8 MB
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