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________________ जैनविद्या 24 ध्यातव्य है - हेतु संदिग्ध, विपरीत और अव्युत्पन्न (गृहीत और अगृहीत पदार्थ का यथावत् निर्णय नहीं होना) पदार्थों को सिद्ध करने में ही समर्थ होता है, इनसे विपरीत पदार्थों को सिद्ध करने में नहीं; क्योंकि संदिग्ध आदि पदार्थों की सिद्धि के लिए ही अनुमान की आवश्यकता होती है, असंदिग्ध आदि पदार्थों की सिद्धि के लिए अनुमान की आवश्यकता नहीं होती है। क्योंकि वे तो सिद्ध ही होते हैं। और संदिग्ध आदि पदार्थों को सिद्ध करने में ही हेतु की सार्थकता है। 1.2.1.2. हेतु के प्रकार माणिक्यनन्दि के अनुसार हेतु दो प्रकार का है - 1. उपलब्धि हेतु और 2. अनुपलब्धि हेतु ।' ध्यातव्य है - सामान्यतः उपलब्धि हेतु को विधि-साधक अर्थात् सद्भाव का साधक माना जाता है और अनुपलब्धि हेतु को प्रतिषेध-साधक अर्थात् अभाव का साधक । किन्तु माणिक्यनन्दी के अनुसार दोनों हेतु विधि और प्रतिषेध दोनों के साधक हैं, अर्थात् उपलब्धि हेतु भी विधि और प्रतिषेध दोनों का साधक है तथा अनुपलब्धि हेतु भी विधि और प्रतिषेध दोनों का साधक है, जैसा कि परीक्षामुख' (3.54, 3.58) में लिखा है - "उपलब्धिर्विधिप्रतिषेधयोरनुपलब्धिश्च"। विधि और प्रतिषेध के आधार पर दोनों हेतुओं के पुनः दो-दो भेद हैं। उपलब्धि हेतु के दो भेद हैं - 1. अविरुद्धोपलब्धि हेतु और 2. विरुद्धोपलब्धि हेतु । अविरुद्धोपलब्धि हेतु विधि-साधक है और विरुद्धोपलब्धि प्रतिषेध-साधक। 1. अविरुद्धोपलब्धि - पुनः अविरुद्धोपलब्धि के छः भेद किये हैं - (1) अविरुद्धव्याप्योपलब्धि हेतु, (2) अविरुद्धकार्योपलब्धि हेतु, (3) अविरुद्धकाणोपलब्धि हेतु, (4) अविरुद्धपूर्वचरोपलब्धि हेतु, (5) अविरुद्धउत्तरचरोपलब्धि हेतु और (6) अविरुद्धसहचरोपलब्धि हेतु।' ज्ञातव्य है ‘परीक्षामुख' एवं 'प्रमेयकमलमार्तण्ड' में अविरुद्धोपलब्धि के इन छ: भेदों के लक्षण नहीं दिये गये हैं बल्कि उनके मात्र उदाहरण दिये गये हैं जो निम्नलिखित रूप से हैं -
SR No.524769
Book TitleJain Vidya 24
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2010
Total Pages122
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size8 MB
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