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“आचार्य प्रभाचन्द्र विशिष्ट प्रतिभा के धनी थे। वे संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान, दार्शनिक और सिद्धान्त-शास्त्रों के ज्ञाता थे। उन्होंने प्रमेयकमलमार्तण्ड, न्यायकुमुदचन्द्र
जैसी प्रमेयबहुल कृतियों की रचना कर जैन-जैनेतर दर्शनों पर अपनी विशिष्टता एवं प्रामाणिकता सिद्ध की है। उन्होंने किसी भी विषय का समर्थन या खण्डन प्रचुर युक्तियों सहित किया है। वे तार्किक, दार्शनिक और सहृदय व्यक्तित्व के धनी रहे हैं। जैनागम की सभी विधाओं पर उनका पूर्ण अधिकार था। प्रभाचन्द्र का ज्ञान गंभीर और अगाध था। स्मरणशक्ति भी तीव्र थी। उन्होंने अपनी रचनाओं में पूर्ववर्ती जैनाचार्यों के अलावा भारतीय दर्शन के अन्य महत्त्वपूर्ण ग्रंथ वेद, उपनिषद्, स्मृति, पुराण, महापुराण, वैयाकरण, सांख्ययोग, वैशेषिकन्याय, पूर्व मीमांसा, उत्तर मीमांसा, बौद्ध दर्शन एवं श्वेताम्बर आदि के सैकड़ों ग्रन्थों के उद्धरण - सूक्तियाँ देकर अपने अगाध वैदूष्य का परिचय दिया है। प्रभाचन्द्र व्याकरण शास्त्र के भी विशिष्ट ज्ञाता थे। उन्हें पातंजल महाभाष्य का तलस्पर्शी ज्ञान था।"
“यद्यपि प्रभाचन्द्र नाम के एकाधिक विद्वानों, ग्रंथकारों, टिप्पणकर्ताओं, न्यास लेखकों ने जैन वाङ्मय परम्परा को ज्योतिर्मान किया है, तथापि अपने पाण्डित्य और वैदूष्य की जो अमिट छाप तर्क और न्याय विषय-प्रधान ग्रंथों - प्रमेयकमलमार्तण्ड तथा न्यायकुमुदचन्द्र जैसे दुरूह ग्रंथ के रूप में पण्डित प्रभाचन्द्र ने छोड़ी है और अपनी विलक्षण प्रतिभा का जो परिचय अपने से पूर्ववर्ती गूढ, दार्शनिक, आध्यात्मिक एवं सैद्धांतिक ग्रंथों - शब्दाम्भोज भास्कर, शाकटायन व्यास, पंचास्तिकाय, तत्त्वार्थवृत्ति, समाधितन्त्र एवं क्रिया-कलाप पर भाष्य, टिप्पण, टीका लिखकर दिया है तथैव उन्होंने अपनी लेखनी द्वारा संस्कृत गद्य के माध्यम से कथा जैसे ललित विषय पर भी अधिकारपूर्वक लिखने का कौशल प्रदर्शित किया है। ऐसे पण्डित प्रभाचन्द्र निश्चय ही अद्भुत क्षमतावाले प्रकाण्ड विद्वान थे।"
'जैनविद्या' शोधपत्रिका का यह 24वाँ अंक इन्हीं आचार्य प्रभाचन्द्र पर आधारित विशेषांक है। जिन विद्वान् लेखकों ने अपनी रचना के द्वारा इस विशेषांक का कलेवर निर्माण किया, उनके प्रति आभारी हैं।
संस्थान समिति, सम्पादक मण्डल, सहयोगी सम्पादक एवं सहयोगी कार्यकर्ताओं के प्रति आभारी हैं।
मुद्रण हेतु जयपुर प्रिन्टर्स प्रा. लि. धन्यवादाह हैं।
डॉ. कमलचन्द सोगाणी
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