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जैनविद्या 24
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_3. प्रभाचन्द्र का तीसरा विशाल ग्रन्थ 'तत्त्वार्थवृत्ति पद-विवरण' है। यह महाग्रन्थ श्री पूज्यपाद विरचित 'सर्वार्थसिद्धि' की विस्तृत व्याख्या है। ___4. 'शाकटायन व्याकरण' के कर्ता श्री पाल्यकीर्ति यापनीय संघ के आचार्य थे। शाकटायन व्याकरण का असली नाम 'शब्दानुशासन' है। कुछ दिनों के बाद यह शाकटायन व्याकरण नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसी पर प्रभाचन्द्र ने 'शब्दानुशासन न्यास' नाम से विस्तृत व्याख्या की है जो मूल स्वतंत्र ग्रन्थ-जैसा माना जाता है।
5. आचार्य कुन्दकुन्द-रचित 'प्रवचनसार' की व्याख्या और विस्तृत टीका 'प्रवचन सरोज भास्कर' नाम से विशेष मूल ग्रन्थ के रूप में व्याख्यायित किया है।
6. श्री पूज्यपादस्वामी-कृत 'जैनेन्द्र व्याकरण' पर प्रभाचन्द्र-कृत 'शब्दाम्भोज भास्कर' (जैनेन्द्र महान्यास) ग्रन्थ व्याकरण जगत की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या है। - 7. 'गद्य कथाकोश' में 89 कथाएँ हैं जो संस्कृत गद्य में लिखी गई हैं। लगता है इन कथाओं के बाद पुष्पिका है जो लिपिकार ने भूलवश लिख दिया हो क्योंकि इन 89 कथाओं के आगे भी और कुछ लिखा है। ___8. अपभ्रंश के कवि-सम्राट श्री पुष्पदंत द्वारा रचित महापुराण' ग्रन्थ पर प्रभाचन्द्राचार्य द्वारा ‘महापुराण टिप्पण' ग्रन्थ रचा गया है। श्री पुष्पदन्त ने महापुराण की रचना सिद्धार्थ संवत् 881 में शुरू किया था और सिद्धार्थ सं. 887 (965 ए.डी.) में समाप्त किया था। यह 3300 श्लोक प्रमाण है। (जिसमें आदिपुराण के 1950 और उत्तरपुराण के 1350 श्लोक हैं) ग्रन्थ धाराधिपति जयसिंह के समय लिखा गया था। यह टिप्पण के आदि मंगल में लिखा है - ___ “प्रणम्य वीरं विवुधेन्द्र संस्तुतं प्रकट निरस्त दोषं वृषभं महोदयम् । पदार्थसंदिग्ध जनप्रबोधकं महापुराणस्य करोमि टिप्पणम्।"
अंतमंगल में लिखा है -
“समस्तसन्देहहरं मनोहरं प्रकृष्टपुण्यप्रभवजिनेश्वरम् । कृतं पुराणं प्रथमे सुटिप्पणम्, मुखावबोधं निखिलार्थ दर्पणम् ।।
इति प्रभाचन्द्र विरचितमादिपुराणे पंचासश्लोकहीनं सहस्रद्वयपरिमाणं परिसमाप्ता।"
उत्तरपुराण की अन्तिम पुष्पिका निम्न प्रकार है -