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________________ जैनविद्या 24 अकारि ग्रन्थःपूर्णोऽयम् नाम्ना दृष्टिप्रबोधकः श्रेयसे बह पुण्याय मिथ्यात्वापोह हेतवे ।।62।। भट्टारक प्रभाचन्द्र शिष्यो यो विद्यते भुवि । अनेक गुणसम्पन्नो धर्मचन्द्रामिधो मुनिः ।।63 ।।" 17. सत्रहवें ‘प्रभाचन्द्र' वे थे जिन्होंने ‘पंचास्तिकाय प्रदीप' नामक ग्रन्थ की रचना की थी। प्रशस्ति के अंत में लिखा है - सन्मार्गतत्व विविधार्थ मणिप्रकाशः श्री मत्प्रभेन्दु रचितो न विदन्त रर्थ्य । ज्योतिप्रभा-प्रहतमोहमहान्धकारः पंचास्तिकाय भुवने ज्वलित प्रदीपः॥ 18. अठारहवें 'प्रभाचन्द्र' वे हैं जो भट्टारक ललितकीर्ति कृत 'यशोधर चरित्र' की प्रशस्ति में उल्लिखित हैं।16 19. भट्टारक नरेन्द्रकीर्ति द्वारा स्थापित भट्टारक पट्टावली - संवत् 1706 वर्षे ज्येष्ठ सुदी पंचमी दिवसे रविवासरे श्री मूलसंघाम्नाये बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे कुन्दकुन्दान्वये भ. श्री पद्मनन्दि देवास्तत्पट्टे भ. शुभचन्द्र देवास्तत्पट्टे भ. श्री जिनचन्द्रदेवास्तत्पट्टे भ. प्रभाचन्द्र देवास्तत्पट्टे श्री देवेन्द्रकीर्ति देवास्तपट्टे देवेन्द्रकीर्ति देवास्ततत्पट्टे भ. नरेन्द्रकीर्ति देवास्तदाम्नाये चम्पावती नगर समीपवर्ते च गावि नाम्नि स्थले श्री नेमिनाथचैत्यालये महाराजश्री जयसिंह राज्य प्रवर्तमाने भ. श्री नरेन्द्रकीर्तिदेवाभिः पट्टावली स्तम्भ, कर्मक्षयार्थं कारायिता। चम्पावती श्रावकानं नित्य-प्रणमति । शुभं भूयात/कल्याणमस्तु/वर्द्धतां जिनशासनं । _17 पंक्तियोंवाला यह पट्टावली स्तम्भ आमेर संग्रह में सुरक्षित है। इसमें भट्टारक जिनचन्द्र के शिष्य भट्टारक प्रभाचन्द्र का उल्लेख है। इन्हीं की शिष्य-परम्परा में भट्टारक नरेन्द्रकीर्ति ने सं. 1716 में अम्बावती (आमेर) दुर्ग में तीर्थंकर विमलनाथ के मंदिर की प्रतिष्ठा कराई थी जिसे मिर्जा राजा जयसिंह के मुख्यमंत्री मोहनदास भौंसा (भाँवसा) ने बनवाया था। यह विशाल शिलालेख भी आमेर संग्रहालय में सुरक्षित है। उसमें भी पाँचवीं पंक्ति में प्रभाचन्द्र (प्रभेन्दु) का उल्लेख है। अतः भट्टारक प्रभाचन्द्र आमेर पट्ट के प्रतिष्ठित भट्टारक विद्वान रहे हैं जिनका समय सं. 1600 के आस-पास होना चाहिए। 20. बीसवें 'प्रभाचन्द्र' 'विद्य' शब्द से अलंकृत थे जो वीरपुर तीर्थ के अधिपति मुनि श्री रामचन्द्रजी त्रैविद्य के शिष्य थे। ये मंत्रवादी थे। चालुक्य राज्य सं. 48 (1142) ई.
SR No.524769
Book TitleJain Vidya 24
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2010
Total Pages122
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size8 MB
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