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________________ जैनविद्या 24 आचार्य प्रभाचन्द्र के उक्त विचार एवं तर्क- युक्ति सुनकर राजा भोज एवं पुरोहितराज निरुत्तर हुए। राजा भोज ने कहा कि शूद्रों की दीक्षा से चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। इससे मानव जाति का कल्याण होगा । इस घटना से धारा नगरी के सभी जन हर्षविभोर हुए । ' 39 उक्त घटना एवं विचारों से आचार्य प्रभाचन्द्र के उदात्त विचार एवं सर्वोदयी भावना का ज्ञान होता है। वस्तुतः यह जैनधर्म का हार्द है जो सभी जीवों को आत्मकल्याण हेतु आमंत्रित करता है। प्रभाचन्द्र की कृतियाँ आचार्य प्रभाचन्द्र-कृत जो ग्रन्थ प्रकाश में आये हैं उनमें अधिकांश व्याख्यात्मकभाष्य रूप में हैं और कुछ स्वतंत्र ग्रन्थ हैं। उनकी कृतियों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है : - 1. प्रमेयकमलमार्तण्ड - आचार्य माणिक्यनन्दि ने अकलंकदेव के न्यायशास्त्रों का गहन मंथन कर 'परीक्षामुखसूत्र' की रचना की। इसके छह परिच्छेद में 212 सूत्र हैं। इसकी विषय-वस्तु प्रमाण और प्रमाणाभास का विवेचन है । आचार्य प्रभाचन्द्र ने भोजदेव के राज्य में धारानगरी में परीक्षामुखसूत्र पर विस्तृत व्याख्यात्मक भाष्य लिखा जो 'प्रमेयकमलमार्तण्ड' के नाम से बहुश्रुत हुआ । जिस प्रकार सूर्य का उदय होने पर कमल-फूल विकसित होते हैं उसी प्रकार प्रमेयरूपी कमलों को प्रकाशित करने के लिए यह कृति मार्तण्ड (सूर्य) के समान है। इसलिए इसका प्रमेयकमलमार्तण्ड नाम सार्थक है। यह जैनदर्शन और न्याय का महत्वपूर्ण ग्रन्थ है जिसका प्रमाण बारह हजार श्लोक है। आचार्य प्रभाचन्द्र ने परीक्षामुख - सूत्रों की विस्तृत व्याख्या की है साथ ही तत्कालीन भारतीय दार्शनिकों एवं न्यायविदों के पक्षों एवं चर्चित विषयों पर अनेकान्त रूप से प्रमाणों द्वारा खण्डन करते हुए जैन न्याय को महिमामंडित किया है। ऐसा करते हुए उन्होंने वैदिक और अवैदिक दर्शनों के ग्रन्थों से वाक्य उद्धृत कर अपनी कृति को व्यापक रूप प्रदान किया । इस कारण यह भाष्य होकर भी स्वतंत्र रचना जैसा मौलिक ग्रन्थ बन गया है। आचार्य प्रभाचन्द्र ने इसमें अनेक सम्बद्ध विषयों पर विशद विवेचन किया है। उनमें निम्न विषय पठनीय / मननीय हैं - भूत -चैतन्यवाद, सर्वज्ञत्व विचार, ईश्वर - कर्तृत्व विचार, मोक्ष - स्वरूप विचार, केवलिभुक्ति विचार, स्त्रीमुक्ति विचार, वेद - अपौरुषेयत्व विचार, नैयायिकाभिमत सामान्य - स्वरूप विचार, ब्राह्मणत्व जातिनिरास, क्षणभंगवाद, वैशेषिकाभिमत आत्मद्रव्य विचार, जय-पराजय व्यवस्था आदि ।
SR No.524769
Book TitleJain Vidya 24
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2010
Total Pages122
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size8 MB
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