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जैनविद्या 24
मार्च 2010
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एक में अनेक : विराट व्यक्तित्व के धनी आचार्य प्रभाचन्द्र
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- डॉ. राजेन्द्रकुमार बंसल
प्रत्येक व्यक्ति की अपनी कोई / कुछ विशेषता होती है जो उसे दूसरों से भिन्न सिद्ध करती है। यही विशेषता उसका व्यक्तित्व बनता है। जैनधर्म के साहित्याकाश में अनेक आचार्यों ने विविध अनुयोगों के साहित्य की रचना की है। कुछ ने मूल रचनाएँ की हैं तो किसी ने उन रचनाओं की टीकाएँ - भाष्य लिखे । कहीं-कहीं ये टीकाएँ एवं भाष्य मूल रचनाओं जैसे बहुश्रुत हुए हैं। आचार्य प्रभाचन्द्र एक ऐसे अनोखे, अनुपम आचार्य हैं जिनमें अनेक आचार्यों के व्यक्तित्व समाए हुए हैं तथा उनकी कृतियाँ जो भाष्य हैं, वे स्वतंत्र ग्रन्थ जैसे प्रसिद्ध हुए । इसप्रकार 'एक में अनेक' की युक्ति उन्होंने चरितार्थ की है।
आपने न्याय, व्याकरण, अध्यात्म, सिद्धान्त, क्रिया, कथा, प्रथमानुयोग आदि सभी क्षेत्रों में प्रमाणिक एवं विशेषज्ञ के रूप में अपनी लेखनी चलाई जिनमें जैनेत्तर ग्रन्थों के सहस्रों संदर्भ दे अपने विशिष्ट वैदूष्य को प्रकट किया। आचार्य कुन्दकुन्द, आचार्य समन्तभद्र, उमास्वामी, पूज्यपाद, अकलंकदेव, गुणभद्र, मानिक्यनंदि, पुष्पदंत आदि सभी भास्कर (सूर्य)) - स्वरूप आलोकित करनेवाले जैनाचार्यों ने आपके हृदय और बुद्धि को प्रकाशित कर रखा था, जिसके कारण आचार्य प्रभाचन्द्र ने जो भी भाष्य या अन्य कृतियाँ सृजीं, सभी के नाम के साथ 'भास्कर' या 'चन्द्र' शब्दों का प्रयोग अवश्य