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________________ 104 जैनविद्या 24 53. (1) प्रमाणोभयसिद्धे तु साध्यधर्मविशिष्टता। परीक्षामुख, सूत्र 3.26 (3.30) ___ * व्याप्तौ तु साध्यं धर्म एव। वही, सूत्र 3.28 (3.32) (2) प्रयोगकाले तु तेन साध्यधर्मेण विशिष्टो धर्मी साध्यमभिधीयते, प्रतिनियतसाध्यधर्म विशेषणविशिष्टतया हि धर्मिणः साधयितु मिष्टत्वात् साध्यव्यपदेशाविरोधः। प्रमेयकमलमार्तण्ड, (परीक्षामुख, सूत्र 3.25 की टीका), पृ. 371. 54. परीक्षामुख, सूत्र 3.27 (3.31) 55. वही, सूत्र 3.24 (3.28) 56. वही, सूत्र 3.25 (3.29) 57. वही, सूत्र 3.27 (3.31) 58. वही, सूत्र 6.12 59. वही, सूत्र 6.13 से 20 60. वही, सूत्र 6.14 61. वही, सूत्र 3.33, 3.42 (3.37, 3.46) 62. वही, सूत्र 3.90, 3.91 (3.94, 3.95) 63. वही, सूत्र 3.92 (3.96) 64. हेतु के असिद्ध आदि दोषों को दूर करके स्वसाध्य के साथ उसका अविनाभाव स्थापित करना ‘समर्थन' कहलाता है। 65. वही, सूत्र 3.34 (3.38) 66. वही, सूत्र 3.35 (3.39) 67. वही, सूत्र 3.37, 3.92 (3.41, 3.96) 68. वही, सूत्र 3.38 (3.42) 69. वही, सूत्र 3.40 (3.44) 70. वही, सूत्र 3.44 (3.48) 71. वही, सूत्र 3.45 (3.49) 72. सहचारिणोळप्यव्यापकयोश्च सहभावः। वही, सूत्र 3.13 (3.17) 73. प्रमेयकमलमार्तण्ड, भाग-द्वितीय, (परीक्षामुख, सूत्र 3.11 से 13 की टीका) पृ. 304 से 307, श्री लाला मुसद्दीलाल जैन चेरीटेबल ट्रस्ट, 2/4, अन्सारी रोड, दरियागंज, देहली-110006. 74. परामर्थं तु तदर्थपरामर्शिवचनाज्जातम्। वही, सूत्र 3.51 (3.55) 75. प्रमेयकमलमार्तण्ड, (परीक्षामुख, सूत्र 3.55 की टीका), पृ. 378, सत्यभामाबाई पाण्डुरंग, निर्णयसागर प्रेस, बम्बई, सन् 1941.
SR No.524769
Book TitleJain Vidya 24
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2010
Total Pages122
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size8 MB
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