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________________ जैनविद्या 24 है; क्योंकि वह बोलता है। इस अनुमान का हेतु 'वक्तृत्व' सर्वज्ञ और असर्वज्ञ दोनों में पाया जा सकता है; क्योंकि सर्वज्ञ के साथ वक्तृत्व का कोई विरोध नहीं है (जो सर्वज्ञ है वह बोलता नहीं है ऐसा कोई नियम नहीं है।) सर्वज्ञत्व और वक्तृत्व में विरोध इसलिए नहीं है; क्योंकि ज्ञान के उत्कर्ष में वचनों का अपकर्ष नहीं देखा जाता है बल्कि प्रकर्षता ही देखी जाती है। इसलिए किसी पुरुष-विशेष में सर्वज्ञत्व भी रह सकता है और वक्तृत्व भी रह सकता है। अतः हेतु वक्तृत्व के विपक्ष ‘सर्वज्ञ' में रहने की शंका होने के कारण इस हेतु को 'शंकितविपक्षवृत्ति अनैकान्तिक हेत्वाभास' कहते हैं। 4. अकिञ्चित्कर हेत्वाभास अकिश्चित्कर हेत्वाभास का लक्षण किया गया है - “सिद्धे प्रत्यक्षादिबाधिते च साध्ये हेतुरकिञ्चित्करः।"6.35 (5.35) अर्थात् साध्य के सिद्ध होने पर और प्रत्यक्षादि प्रमाण से बाधित होने पर प्रयुक्त हेतु, अन्य शब्दों में, जब साध्य पहले से ही सिद्ध हो अथवा प्रत्यक्ष आदि किसी प्रमाण से बाधित हो, उस साध्य की सिद्धि के लिए जो हेतु दिया जाता है जो कि उस साध्य का कुछ भी सिद्धि नहीं कर पाता है; क्योंकि या तो साध्य पहले से ही सिद्ध है या बाधित है, उस हेतु को 'अकिञ्चित्कर हेत्वाभास' कहते हैं, जैसे शब्द श्रावण (श्रवण इन्द्रिय का विषय) है; क्योंकि वह शब्द है। इस अनुमान में 'शब्दत्व' हेतु के द्वारा साध्य 'शब्द श्रावणत्व' अर्थात् 'शब्द का कान से सुना जाना' की सिद्धि की जा रही है जो व्यर्थ है; क्योंकि ‘शब्द का कान से सुना जाना' तो पहले से ही सिद्ध है। शब्दत्व के द्वारा कुछ भी सिद्धि नहीं हो रही है। अतः यह ‘असिद्ध अकिञ्चित्कर हेत्वाभास' है। और प्रमाणबाधित अकिञ्चित्कर हेत्वाभास का उदाहरण है - अग्नि उष्ण नहीं है। क्योंकि वह द्रव्य है। इस अनुमान में 'द्रव्यत्व' हेतु के द्वारा साध्य ‘अग्नि की उष्णतारहितता' की सिद्धि की जा रही है। किन्तु अग्नि का उष्णतारहित तो प्रत्यक्ष प्रमाण से बाधित है। अतः इस हेतु के द्वारा साध्य का कुछ भी सिद्ध नहीं होने के कारण यह हेतु प्रमाणबाधित अकिञ्चित्कर हेत्वाभास है। 1.2.2. साध्य माणिक्यनन्दि ने 'साध्य' का लक्षण किया है - "इष्टमबाधितमसिद्धं साध्यम्।" 3.16 (3.20)
SR No.524769
Book TitleJain Vidya 24
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2010
Total Pages122
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size8 MB
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