________________
जैनविद्या - 22-23
अप्रेल - 2001-2002
61
- 2007-2002
प्रतिष्ठासारोद्धार : एक सामान्य परिचय
- डॉ. कस्तूरचन्द्र 'सुमन'
यह एक प्रतिष्ठा सम्बन्धी ग्रंथ है। इसके रचयिता हैं पण्डितप्रवर श्री आशाधरजी। इस ग्रन्थ का सर्वप्रथम प्रकाशन विक्रम संवत् 1974 में पाढम (मैनपुरी) निवासी पं. मनोहरलाल शास्त्री के द्वारा संक्षिप्त हिन्दी भाषा टीका सहित श्री जैनग्रंथ-उद्धारक, मुम्बई से किया गया था।
पण्डितप्रवर श्री आशाधरजी गृहस्थाचार्य थे। उन्होंने श्री वसुनन्दि आचार्य कृत प्रतिष्ठासार संग्रह के विषय का उद्धार करने के ध्येय से विस्तारपूर्वक इस ग्रन्थ की रचना की तथा इसका प्रतिष्ठासारोद्धार सार्थक नाम रखा।'
अपर नाम - इस ग्रन्थ का अपर नाम जिनयज्ञकल्प बताया गया है। रचयिता श्रीमत् पण्डितप्रवर आशाधर ने स्वयं ग्रंथ के मंगलाचरण में ग्रन्थ का नाम जिनयज्ञकल्प कहा है
जिनान्नमस्कृत्य जिनप्रतिष्ठा शास्त्रोपदेशव्यहारदृष्ट्या।
श्री मूलसंघे विधिवत्प्रवुद्धान् भव्यान् प्रवक्ष्ये जिनयज्ञकल्पम्॥1॥ लेखक ने मंगलाचरण में आये 'जिन' शब्द की व्याख्या करते हुए कहा कि 'जिन' वे भव्यात्माएँ हैं जिन्होंने कर्मरूपी वैरियों को जीत लिया है। अत: पंच परमेष्ठी तथा उनके