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________________ सम्पादकीय 'जैनागम में निष्णात पण्डितप्रवर आशाधर तेरहवीं शताब्दी के सुप्रसिद्ध विद्वान थे । ' 'राजस्थान का माण्डलगढ़ (दुर्ग) जिला भीलवाड़ा में पं. आशाधर का जन्म हुआ था। जैन धर्म में श्रद्धालु भक्त सल्लक्षण पं. आशाधर के पिता थे और माता का नाम श्री रत्नी था। पं. श के पिता को राजाश्रय प्राप्त था । ' 'अत्यधिक सुशील एवं सुशिक्षित सरस्वति नामक महिला को पं. आशाधर की पत्नी होने का सौभाग्य मिला था। इनके छाहड़ नामक एक पुत्र था जिसने अपने गुणों के द्वारा मालवा के राजा अर्जुन वर्मा को प्रसन्न किया था ।' ‘वि.सं. 1249 में जब आशाधर 19 वर्ष के हुए तो उस समय मुसलमान राजा शहाबुद्धीन द्वारा सपादलक्ष देश पर आक्रमण किया गया था और वहाँ उसका राज्य हो गया था । ' 'जैनधर्म पर आघात होने और उसकी क्षति होने के कारण ये अपना जन्मस्थान छोड़कर सपरिवार मालवा मण्डल की धारापुरी नामक नगरी में आ गये थे। उस समय वहाँ विंध्य वर्मा राजा थे । यहीं पर रहकर आशाधर ने वादिराज के शिष्य पं. धरसेन और उनके शिष्य पं. महावीर से जैनधर्म, न्याय और जैनेन्द्र व्याकरण पढ़ा था । ' 'अपनी विद्या - भूमि धारानगरी में पं. आशाधर जैन एवं जैनेतर समस्त साहित्य का अध्ययन कर बहुश्रुत हो गये थे । इसके पश्चात् धारा को छोड़कर नालछा आ गये ।' 'पं. आशाधर बहुमुखी प्रतिभा के धनी एवं असाधरण कवि थे । इनके अपरिमित ज्ञान को देखकर श्री मदनकीर्ति मुनि ने इन्हें प्रज्ञा - पुञ्ज (ज्ञान का भण्डार) कहा है। इसी प्रकार इनके गुरुत्व से प्रभावित एवं आकर्षित होकर अनेक मुनियों एवं विद्वानों ने इन्हें अनेक उपाधियों से विभूषित किया है। मुनि उदयसेन ने पं. आशाधर को 'नय विश्वचक्षु' और ' कलि कालिदास' कहकर अभिनन्दन किया । भट्टारक देवेन्द्रकीर्ति ने आशाधर को 'सूरि', 'सम्यग्धारियों में शिरोमणि' आदि कहा है । उत्तरवर्ती विद्वानों ने पं. आशाधर को 'आचार्यकल्प' कहा है । ' 'पं. आशाधर ने धारानगरी थोड़कर नालछा आने के पश्चात् साहित्य-सृजन कार्य आरम्भ किया। कृतियों की रचना, साहित्य सेवा, जिनवाणी की सेवा एवं उपासना को जीवन केन्द्र बनाया। आशाधर का अध्ययन अगाध और अभूतपूर्व था । यही कारण है कि उन्होंने संस्कृत भाषा में न्याय, व्याकरण, काव्य, अलंकार, अध्यात्म, पुराण, शब्दकोश, धर्मशास्त्र, योगशास्त्र, वैद्यक (आयुर्वेद), ज्योतिष आदि विषयों से सम्बन्धित विपुल ग्रन्थों की रचना कर जैन वाङ्मय को समृद्ध करने में अभूतपूर्व योगदान किया ।' ‘आचार्यकल्प पण्डित आशाधरजी की अद्वितीय जैन साहित्य साधना, अगाध बुद्धिकौशल एवं स्वानुभव से परिपूर्ण धर्मामृतरूप जैनागम-सार उनकी कृति ' अध्यात्म-रहस्य' में सहज ही द्रष्टव्य है ।' (vi)
SR No.524768
Book TitleJain Vidya 22 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2001
Total Pages146
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size9 MB
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