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जैनविद्या - 22-23
एवं धार्मिक विषयों में पूर्व रचित ग्रन्थों का अवगाहन कर पुस्तक-शिष्य बननेवाले पण्डित आशाधर ने इन विषयों में न केवल अपने शिष्यों को पारंगत किया, अपितु इन पर साधिकार लेखनी चलाकर अपनी प्रणीत कृतियों से संस्कृत - भारती को भी समृद्ध किया । 'नय विश्वचक्षु', 'कलिकालिदास' विरुदों से विभूषित पं. आशाधर की कृतियाँ आज तक विद्वज्जन के लिए प्रेरणास्रोत बनी हुई हैं । यतिपति मदनकीर्ति ने उन्हें 'प्रज्ञापुञ्ज' सही कहा है। उस प्रज्ञापुञ्ज आशाधर को मेरा भी नमन है ।
• ज्योति निकुंज
चारबाग
लखनऊ-226004