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________________ जैनविद्या 14-15 प्रथम संधि 81 लोकोत्तम गौतम ( गणधर ), भगवान महावीर के पास दीक्षा लेनेवाले संजय नृप और संसार की शरण, केवलज्ञानरूपी नेत्रवाले मंगलधाम पूज्य वीर (महावीर) की जय हो। (मैं) उन जिनेन्द्र के वचनों की आराधना करता हूँ । 1.1 (मंगलस्वरूप वीर-वर्द्धमान - गुण - स्मरण) कामदेव के पाँचों वाणों (द्रवण, शोषण, तापन, मोहन और उन्मादन) का नाशकर, त्रैलोक्य- लक्ष्मी में मुकुट - स्वरूप, संसारिक चारों गतियों (नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव) में गमनागमन से मुक्त, आठों कर्मों (ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय) के प्रगाढ़ बन्धन से मुक्त, नौ भाव योनियों (सचित्त, शीत, संवृत, अचित्त, उष्ण, विवृत, सचित्ताचित्त, शीतोष्ण और संवृत-विवृत) में उत्पत्ति से रहित, परम पद-मोक्ष और शुद्ध स्वभाव में लीन, पाँच प्रकार के शरीर - भार ( औदारिक, वैक्रियिक, आहारक तैजस और कार्माण) का अन्त करके भवसागर से पार पाकर, ज्ञान और दर्शन के आवरण से रहित, वेदनीय से मुक्त, मोहनीय का नाशकर, आयु (कर्म) से मुक्त, नाम, गोत्र और अन्तराय का नाशकर (और) शुभोत्पन्न पुण्य तथा अशुभोत्पन्न पाप को गलाकर निश्चल, पाँचों प्रकार के दुःखों को त्यागकर (और) एक साथ उत्पन्न होनेवाले अनन्त सुख आदि अनन्त चतुष्टय को पाकर, चौरासी लाख जन्मप-योनियों से च्युत होकर संसार को निःशेष करनेवाले, अगम्य, तीनों लिंग (पुल्लिंग, स्त्रीलिंग और नपुंसकलिंग) तथा छहों पर्याप्तियों (आहार, शरीर, इन्द्रिय, श्वासोच्छ्वास, भाषा और मन को नाशकर और क्षीण एक सौ अड़तालीस कर्म-प्रकृतियों से रहित, अणु और स्कन्ध द्रव्य-संबंध को त्यागकर केवल आत्मा स्वरूप पानेवाले, अठारह दोष-भाव (जन्म, जरा, तृषा, क्षुधा, विस्मय, अरति, खेद, रोग, शोक, मद, मोह, भय, निद्रा, चिन्ता, स्वेद, राग, द्वेष और मरण) नाशकर तथा दुःख से रोकने योग्य अनादि के राग को धोकर द्रव्य (जीव ) पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल स्वरूप स्फुरित ज्ञानवाले, सहजानन्द, अचल सुख - निधान चौबीसवें जिनेन्द्र वर्द्धमान की जय हो । धत्ता - संसार के लिए सूर्य स्वरूप, संसार का अन्त करनेवाले उन जिनेश्वर वीर को हृदय धारण करके उनकी बुद्धि के प्रकाश में विस्तृत निज संबोध (काव्य) संक्षेप से कहता हूँ । 1 ।
SR No.524762
Book TitleJain Vidya 14 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1994
Total Pages110
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size8 MB
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