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________________ जैनविद्या 14-15 1. किं मार्गणं नाम? चतुर्दश जीवसमासा:सदादिविशिष्टाःमार्यन्तेऽस्मिन्ननेन वेति मार्गणम्। तेषां चतुर्दशानां जीवसमासानां चतुर्दशगुणस्थानानामित्यर्थः। - धवला, सूत्र 1.12 की टीका, पृ. 132, जैन संस्कृति संरक्षक संघ, शोलापुर, 1973 । 2. चौदह गुणस्थान हैं - मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत, प्रमत्तसंयत, अप्रमत्तसंयत, अपूर्वकरण-प्रविष्टशुद्धिसंयतों में उपशमक और क्षपक, अनिवृत्ति-बादर-सांपराय-प्रविष्ट-शुद्धिसंयतों में उपशमक और क्षपक, सूक्ष्मसांपराय-प्रविष्ट-शुद्धिसंयतों में उपशमक और क्षपक, उपशान्तकषाय-वीतराग-छद्मस्थ, क्षीणकषाय-वीतराग-छद्मस्थ, सयोगिकेवली और अयोगिकेवली गुणस्थान। - षट्खण्डागम, सूत्र 1.127 3. गोम्मटसार-जीवकाण्ड, गाथा 141, श्री परमश्रुत प्रभावक मण्डल, अगास, 19851 4. गइ इंदिए काए जोगे वेदे कसाए णाणे संजमे दंसणे लेस्सा भविय सम्मत्त सण्णि आहारए चेदि। - षट्खण्डागम, सूत्र 1.1.4 5. धवला, सूत्र 1.1.2 की टीका, पृ. 132। 6. वही, सूत्र 1.1.4 की टीका, पृ. 135-136। 7. षट्खण्डागम, सूत्र 1.1.24। 8. वही, सूत्र 1.1251 9. वही, सूत्र 1.1.261 10. धवला, सूत्र 1.1.24 की टीका, पृ. 203-204। 11. षट्खण्डागम, सूत्र 1.1.27। 12. धवला, सूत्र 1.1.24 की टीका, पृ. 2041 13. षट्खण्डागम, सूत्र 1.1.28। 14. धवला, सूत्र 1.1.4 की टीका, पृ. 136 से 138। 15. वही, सूत्र 1.1.33 की टीका, पृ. 233। 16. वही, सूत्र 1.1.33 की टीका, पृ. 233 से 238। 17. वही, सूत्र 1.133 की टीका, पृ. 234-235। 18. षट्खण्डागम, सूत्र 1.1.36। 19. वही, सूत्र 1.1.371 20. धवला, सूत्र 1.1.4 की टीका, पृ. 139। 21. वही, सूत्र 1.1.4 की टीका, पृ. 139। 22. षट्खण्डागम, सूत्र 1.139। 23. वही, सूत्र 1.1.43। } 24. वही, सूत्र 1.1.441
SR No.524762
Book TitleJain Vidya 14 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1994
Total Pages110
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size8 MB
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