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________________ जैनविद्या 14-15 नवम्बर 1993-अप्रेल 1994 पंचस्तूपान्वयी भट्टारक श्री वीरसेन स्वामी - श्री कुन्दनलाल जैन आचार्य वीरसेन स्वामी भट्टारक ने अब से लगभग 1200 वर्ष पूर्व राष्ट्रकूट नरेश महाराजा राजा जगतुंग के बाद अमोघवर्ष प्रथम के राज्य में शक संवत् 738 के लगभग षटखण्डागम की धवला टीका समाप्त की थी, जैसा कि धवला की प्रशस्ति में उल्लिखित है - जस्स सेसाएण (पसाएण) मए सिद्धन्तमिदं हि अहिलहुंदी ( अहिलहुंद) महुसो एलाइरियां पसियउवरवीरसेणस्स ॥1॥ वंदामि उसहसेणं तिहुवण-जिय-वंधवं सिवं संतं । णाण किरणावहासिय सयल इयए तम पणासियं दिढें ॥2॥ अरहुंतपदो भगवंतो सिद्धा सिद्धा पसिद्ध आइरिया । साहू साहूयमहं पसियंतु भडारया सव्वे ॥3॥ अजजणंदि सिस्सेणुजुव कम्मस्स चंदसेणस्स । तहणत्तुवेण पंचत्थुहण्यं भाणुणोमुणिणा ॥4॥ सिद्धन्त-छंद-जोइस-वायरण-पमाण-सत्थ णिवुणेण। भट्टारएण टीका लिहिएसा वीरसेणेण ॥5॥ अछतीसम्हिसतसए विक्कमरायंकिएसुसगणीमे । वासेसुतेरसीए भाणुविलग्गे धवलपक्खे ॥6॥
SR No.524762
Book TitleJain Vidya 14 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1994
Total Pages110
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size8 MB
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