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जनविद्या-13 ]
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जिनका समुज्ज्वल निर्मल तीर्थ प्रवहमान है (वर्तमान है) उन वीर जिनेन्द्र को नमस्कार करके; ऋषभ, अजित तथा संभव जिन को नमन करके; फिर अद्वितीय जिनोत्तम अभिनन्दन को व सुमतिनाथ को प्रणाम करके, पद्मप्रभ को नमन करके; सुपार्श्वनाथ तथा चन्द्रप्रभ को नमन करके; पुष्पदन्त और शीतलजिन को प्रणाम करके, फिर भट्टारक (परमपूज्य) वासुपूज्य, विमलनाथ, गुणियों में श्रेष्ठ अनन्तनाथ और धर्मनाथ; शान्तिनाथ, कुंथुनाथ
और मल्लिनाथ जिनेश्वर को और परमेश्वर मुनिसुव्रतनाथ को नमस्कार कर; संसार का नाश करनेवाले नमिनाथ, सहनेमि (नेमिनाथ), पार्श्वनाथ फिर पापों का नाश करनेवाले वर्षमान ।
__घता-इन अनेक लक्षणों से युक्त, इन्द्रों द्वारा नमित चौबीस जिनवरों को नमस्कार किया जाकर मेरे द्वारा महाकथा (महापुराण) प्रारम्भ की गई है, लोग इसे अत्यन्त अविचल भाव करके सुनें ॥1॥
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अन्य क्षेत्रों में जितने भी परमपूज्य तीर्थकर हैं उन सबको भावपूर्वक नमस्कार करके, प्रागे जो जिनेश्वर होंगे, जो हो चुके उन सबको बारम्बार भावसहित नमन करके,
और फिर सिद्ध और प्राचार्यों को नमन करके, उपाध्याय और साधुनों को प्रणाम करके, फिर जिनभाषित श्रुत को नमन करके, आर्यिकाओं को नमस्कार करके, दृढ़ चारित्रशाली व सच्चरित्र सामियों को इच्छाकार करके मैं विचार करता हूँ कि कमाया हुआ धन अस्थिर है, नाश करनेवाला है, और पापों का घर है, इसके द्वारा ऐसा क्या किया जाए जिससे धर्म का यश भी बढ़, पापमल से भी छुटकारा हो और न मर। जाय अर्थात् मैं अमर हो जाऊं। घर, कुटुम्ब और शरीर प्रसार है, रोग, शोक, बहुत से दुःखों के घर हैं, भूख-प्यास द्वारा नित्य पीड़ित किया जाता है। धूप में तपता है; शीत में भीजता है। जरा (वृद्धावस्था) रूपी राक्षसी क्षीण करती हुई कहती है-इसमें भ्रांति नहीं है, नष्ट होता हुआ दिखता है। कुछ ही दिनों में नष्ट हो जायेगा, अन्त में यमराज के मुंह में प्रवेश कर जायेगा।
घत्ता-जोन मरता है, न छीजता है, न पीड़ित किया जाता है, समस्त लोक से भयभीत भी नहीं है, जो सुजनों को समभावी और दुष्टों को संतापित करनेवाला है, मैं ऐसे काव्यरूपी शरीर की रचना क