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________________ जनविद्या-13 ] .. [61 विषय धर्मपरीक्षा (अमितगति) 18.85-100 धम्मपरिक्खा (हरिषेण) 10.11-12 पवनवेग का जैनधर्म की ओर झुकाव 19.1-11 10.13 उन्नीसवां परिच्छेद मुनिचन्द्र के पास पहुंचकर मनोवेग द्वारा पवनवेग को व्रत देने का निवेदन श्रावक - व्रतों का वर्णन 19.12-101 10.14-15 -11.1-2 मेवाड़ और उज्जयिनी का वर्णन 11.3-10 निशि भोजन कथा बीसवां परिच्छेद 20.1-22 निशि भोजन कथा तो नहीं है पर उसके दुष्परिणाम अवश्य दिए हैं पाहारदान, प्रोषधोपवास प्रादि का वर्णन तथा व्यसन-त्याग ग्यारह प्रतिमाओं का वर्णन 20.23-52 11.11-21 माहारदान कथा 20.53-63 11.22 पंचणमो कार मन्त्र, जप, फल मादि का वर्णन, अभयदान आदि कथाएँ 20.64-80 20.81-90 11.23.27 सम्यग्दर्शन आदि का वर्णन पवनय का जैनधर्म में दीक्षित होना धर्मपरीक्षा का उद्देश्य और प्रशस्ति भाग इन दोनों धर्मपरीक्षाओं की तुलना करने पर यह सहजता-पूर्वक समझ में आ जाता है कि अमितगति मे विषय-सामग्री हरिषेण से ली और उसे अपनी प्रतिभा से विस्तार देकर दो माह में ही अपनी 'धर्मपरीक्षा' को समाप्त कर दिया (20-90)। शैली भी दोनों की समान है। मनोवेम कल्पित कथाएं बनाकर सामान्यजन के समक्ष प्रस्तुत करता है और जब वे उन कथाओं पर विश्वास नहीं करते तो तुरन्त लगभग वैसी ही कथाएं पुराणों से
SR No.524761
Book TitleJain Vidya 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1993
Total Pages102
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size8 MB
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